Saturday, January 22, 2022

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती पर विशेष

सशस्त्र जनक्रांति के द्वारा बलिया, मिदनापुर, सतारा में सत्ता छीनकर स्वराज सरकार बनाने को नेताजी ने ठहराया था सही

बलिया के लोगों ने अपने घरों पर नेताजी की मूर्ति लगाकर दिया सम्मान
बलिया। स्वराज के अधिकार मांगने से नहीं मिलते उसे छीनना पड़ेगा। दिल्ली चलो 05 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाऊनहाल मैदान में आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च कमाण्डर की हैसियत से सलामी लेने के बाद भारत के भू-भाग वर्मा - म्यांमार, कोहिमा और इंफाल पर कब्जा कर लेने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस की सशस्त्र बगावत की बदौलत ब्रितानिया हुकूमत को भारत छोड़कर जाना पड़ा था।

साहित्यकार शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने बताया कि जब 1942 में बलिया जिले की जनता ने थानों, डाकघरों, रेलवे स्टेशनों को लूट फूंक दिया। रेल पटरियों को उखाड़ दिया था, पुलों को तोड़ दिया था तो तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व के अहिंसावादी सभी नेताओं इस घटना से पल्ला झाड़ लिया था। वह इसे अराजकता फैलाने की साजिश करार दे दिए। यद्यपि कि इस विद्रोह में नरम दल - गरम दल दोनों धड़े के कार्यकर्ता शामिल हुए थे। उस समय सिंगापुर से नेताजी ने बलिया, मिदनापुर, सतारा जिले की जनता की पीठ थपथपाई थी। इन्होंने स्पष्ट कह दिया था कि आजादी भीख मांगने से नहीं मिलेगी, इसे छीनना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि-“अब समय आ गया है जब पूर्वी एशिया में रह रहे 30 लाख भारतीय सभी उपलब्ध संसाधनों को एकत्रित कर के एक साथ इकट्ठे हों। आधे- अधूरे संसाधनों से काम नहीं चलेगा। वित्त भी चाहिए और मानव संसाधन भी हमारी ज़रूरत है। मैं तीन लाख सैनिकों को अपने साथ देखना चाहता हूँ और तीन करोड़ डॉलर भी।”

भारत की स्वतंत्रता के लिये सशस्त्र संघर्ष करनेवाले आजाद हिंद फौज के सुप्रीम कमाण्डर के रुप मे नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने 21 अक्तूबर 1943 को ही स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार बनाया था, जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11देशों ने मान्यता दिया था।
ज्ञातव्य है कि जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप नेताजी को प्रदान किया था, जिनका नामकरण उन्होंने किया। यही से उन्होंने भारत के स्वतंत्र राष्ट्राध्यक्ष सेनापति के रुप में ब्रिटिश साम्राज्य की सेना से भारत के वर्मा, कोहिमा सहित अनेक राज्यों को स्वतंत्र करा लिया था। 6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गाँधी के नाम से एक प्रसारण जारी कर इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये सहयोग एवं आशीर्वाद मांगा था किन्तु अहिंसा का वास्ता देकर बापू ने मना कर दिया था। बापू के मना करने के बाद भी हजारों लोगों ने नेताजी के कदम देश की आजादी के युद्ध को सही ठहराते हुए आजाद हिंद फौज में भर्ती हुये।

बलिया जिले के 28 लोग आजाद हिंद फौज में हुए थे भर्ती
श्री कौशिकेय ने बताया कि बलिया जिले से भी भगवान देव सिंह, रामदेव सिंह, सरजू सिंह, सूर्यदेव सिंह, बैजनाथ सिंह, विक्रमा सिंह, अब्दुल गफ्फूर, अनवर हुसैन, रामचन्द्र यादव, श्रीराम पाठक, बृजकिशोर उपाध्याय, कपिल देव तिवारी, गजाधर राम, गया सिंह, कैलाश सिंह, तारकेश्वर चौबे, जगन्नाथ सिंह, रामाज्ञा सिंह, शुभनारायण सिंह, अनवर हक़, दूबर चौबे, विश्वनाथ सिंह, धनुषधारी सिंह, सुदामा प्रसाद, हरिकिशन चौधरी, भैरों सिंह, अवधेश कुमार पाण्डेय, रामनाथ तिवारी कुल 28 लोग आजाद हिंद फौज में भर्ती हुए थे।

नेताजी के स्मारक पर आज मनाया जाएगा पराक्रम दिवस
 रविवार को नेताजी की 125 वीं जयंती पर कलेक्ट्रेट परिसर में नेताजी के स्मारक पर पराक्रम दिवस का आयोजन किया गया है। जिसके मुख्य अतिथि सीडीओ प्रवीण वर्मा एवं विशिष्ट अतिथि सीआरओ विवेक कुमार श्रीवास्तव होंगे।

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