Monday, September 15, 2025

ओजोन परत संरक्षण दिवस, 16 सितम्बर पर विशेष-

मानव की भोगवादी प्रवृत्ति एवं विलासितापूर्ण जीवन की देन है "ओजोन परत का क्षरण" -डा० गणेश पाठक
    विश्व के प्राय: सभी देशों में प्रतिवर्ष 16 सितम्बर को "ओजोन परत संरक्षण दिवस" मनाया जाता है। प्रति वर्ष ओजोन परत के संरक्षण हेतु एक विशेष विषय(थीम) निर्धारित किया जाता है, जिसे लक्ष्य मानकर पूरे वर्ष ओजोन परत के संरक्षण हेतु विशेष कार्यक्रम चलाए जाते हैं एवं जनजारूकता फैलाई जाती है। 

इस वर्ष 2025 के लिए ओजोन परत संरक्षण का मुख्य विषय है-  "जीवन के लिए ओजोन"। अर्थात् ओजोन परत हमारे जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण है। अत: ओजोन परत को नष्ट होने से कैसे बचाया,कैसे इसकी सुरक्षा रक्षा, सुरक्षा एवं संरक्षण किया जाय ताकि ओजोन परत के क्षरण से होने वाले दुष्प्रभावों से न केवल मानव जीवन , बल्कि सम्पूर्ण जीव जगत तथा पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की सुरक्षा की जा सके। 

       सबसे पहले हम यह जानें कि ओजोन परत क्या है?,उसका कैसे निर्माण होता है?,उसका क्या महत्व है?, ओजोन की परत कैसे नष्ट होती है?, ओजोन परत के क्षरण से क्या हानि हो होती है एवं ओजोन परत की कैसे सुरक्षा की जाय ? 
            डा० गणेश पाठक (पर्यावरणविद)

  वायुमंडल में धरातल से लगभग 22 से 25 किमी०की ऊँचाई एवं 25 से 28 किमी० की मोटाई में ओजोन गैस की एक परत पायी जाती है,जिसे "ओजोन परत" कहा जाता है। ओजोन गैस में सूर्य की पराबैगनी किरणों को अवशोषित करने की क्षमता होती है,इस लिए ओजोन गैस की यह परत सूर्य की घातक पराबैगनी किरणों को रोककर पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का काम करती है।

ओजोन परत का महत्व एवं ओजोन परत क्षरण का दुष्प्रभाव -
     ओजोन गैस विनाशकारी पराबैगनी किरणों के 99 प्रतिशत भाग को अवशोषित कर लेती है और मात्र एक प्रतिशत भाग ही पृथ्वी पर पहुँच पाता है। यदि यह परत न होती तो ये पराबैगनी किरणें सीधे धरती पर आकर भयंकर तबाही मचाती एवं जीव- जगत सहित वनस्पति जगत को भी जलाकर राख कर डालती। यही नहीं इसके प्रभाव से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया लगभग समाप्त हो जाती ,जिससे पेड़- पौधों की वृद्धि भी रूक जाती। पराबैगनी किरणों का जीव - जंतुओं पर आनुवंशिक प्रभाव भी पड़ता है,जिससे जीवों में आनुवंशिक विकृतियां भी उत्पन्न हो जाती है।

इसके प्रभाव से मनुष्य की त्वचा झुलस जाती है और त्वचा कैंसर हो जाता है। यही नहीं इसके प्रभाव से निमोनिया , ब्रोंकाइटिश एवं अल्सर जैसे रोगों में भी वृद्धि होने लगती है। आँखों में मोतियाबिंद होकर अंधापन को बढ़ावा मिलता है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त होने लगती है, जिससे रोगों के विरूध्द लड़ने की शरीर की क्षमता समाप्त हो जाती है।साँस संबंधी बीमारियों का भी जन्म होता है। ओजोन की मात्रा में मात्र एक प्रतिशत की कमी से चर्म कैंसर के रोगियों में लगभग दो लाख की वार्षिक वृद्धि होती है। 

ओजोन परत के नष्ट होने से जब सूर्य की बराबैगनी किरणें छिद्र से होकर पृथ्वी के वायुमंडल एवं पृथ्वी की सतह तक पहुँचती हैं तो तापमान में अतिशय वृद्धि होती है,जिससे भूमण्डलीय तापन में वृद्धि होती है ,जिसे ग्लोबल वार्मिंग भी कहा जाता है। इस तरह इससे जलवायु परिवर्तन की क्रिया भी प्रभावित होती है। पराबैगनी किरणों को अवशोषित करते हुए ओजोन की परत उनकी गर्मी ले लेती है एवं उसे समताप मंडल को दे देती है, जहाँ वायु धाराओं की उत्पत्ति होती है, जिनके प्रभाव से ही पृथ्वी पर स्थिर जलवायु कायम रहती है।

कैसे होता है ओजोन परत का क्षरण - 
    सबसे पहले 1970 में ब्रिटेन के पर्यावरणविदों ने  पता लगाया कि वायुमंडल में ओजोन की मात्र में धीरे- धीरे कमी होती जा रही है। इसके बाद 1974 में अन्टार्कटिका महाद्वीप के ऊपर ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र होने का पता चला। इसके बाद 1985-86 में आस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैण्ड के ऊपरी वायुमंडल में ओजोन परत में छिद्र का पता चला।तब से लेकर वर्तमान समय तक निरन्तर वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन किया जाता रहा है। 1985 से पूर्व केवल उच्च अक्षांशों में  ही ओजोन का स्तर घट रहा था, किन्तु बाद के अध्ययनों से यह पता चला कि अब मध्य अक्षांशों में भी ओजोन कवच कमजोर होता जा रहा है। यही ही हीं आर्कटिक अर्थात उत्तरी ध्रुव के ऊपर भी ओजोन परत का क्षरण हो रहा है। किंतु आर्कटिक के ऊपर की छिद्र की तुलना में अंटार्कटिका के ऊपर का छिद्र पाँच गुना पाया गया।

     ओजोन परत के क्षरण का प्रमुख कारण मानव की भोगवादी प्रवृत्ति एवं विलासितापूर्ण जीवन है, जिसकी पूर्ति हेतु मानव द्वारा ऐसे-ऐसे कार्य किए गए जो मुख्य रूपसे ओजोन परत के नष्ट होने का कारण बना। अब तक किए गए शोधों के आधार पर यह निष्कर्ष निकला है कि भौतिक सुख- सुविधाओं की अधिक से अधिक प्राप्त करने की अंधी दौड़ में लिप्त आधुनिक मानव की करतूत ही ओजोन परत के क्षय का मूल कारण है। वैज्ञानिकों के अनुसार  ओजोन की परत में क्लोरीन यौगिकों की मात्रा में अतिशय वृद्धि हुई है, जिसका जिम्मेदार स्वयं मानव है। 

ओजोन को नष्ट करने वाले कारकों में एक अति महत्वपूर्ण कारक है क्लोरो- फ्लोरो-कार्बन(सी० एफ० सी०), जिसका उपयोग मानव की विलासितापूर्ण वस्तुओं के निर्माण मे किया जाता है। जैसे वातानुकूलन यंत्रों, प्लास्टिक, फोम, रंग-रोगन, फ्रिआन, अनेक दुर्गंधनाशक , कीटनावक, प्रसाधन सामग्री के निर्माण में किया जाता है जो क्लोरो- फ्लोरो- कार्बन समूह के योगिक हैं। फ्रियोन-11 एवं फ्रियोन- 12 जैसे यौगिकों के ओजोन से क्रिया करने के कारण ओजोन में लगातार कमी होती जा रही है। ओजोन के नष्ट होने का वनों का अंधाधुंध विनाश होना भी है। वनों के विनाश से आँक्सीजन का निर्माण कम होता जा रहा है, जिससे अंततः ओजोन के निर्माण में भी कमी आती जा रही है। इस प्रक्रिया में ओजोन का क्षय तो नहीं होता, बल्कि ओजोन का निर्माण ही नहीं होता है। इसके बाद नाइट्रिक आक्साइड एवं क्लोरीन आक्साईड गैसों का विभिन्न माध्यमों से वायुमंडल में प्रवेश करन से भी ओजोन का क्षय हो रहा है। 

नाइट्रिक आक्साइड गैस ओजोन के लिए विशेष घातक है। वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि कल- कारखानों से निकलने वाले विषैले धुँओं एवं गैसों, प्रदूषण के बढ़ते स्तर , अंतरिक्ष अनुसंधान के तहत छोड़े जाने वाले राकेटों से भी ओजोन परत में तेजी से क्षरण हो रहा है। वैज्ञानिकों ने विश्लेषण करके यह निष्कर्ष निकाला है कि यदि थोड़ी सी अवधि के अंतर्गत 125 अंतरिक्ष यानों को छोड़ा जाय तो ओजोन की समूची परत ही नष्ट है जायेगी। गणनाओं से यह भी ज्ञात हुआ है कि परिवहन राकेटों की कुल 85 उड़ाने प्रतिवर्ष से अधिक होने पर भी ओजोन परत का क्षय हो जायेगा।

 ओजोन परत के क्षरण से धरती पर बढ़ सकती है गर्मी -
  यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किए गये एक शोध अध्ययन से इस तथ्य का पता चला है कि 2050 तक ओजोन परत के क्षरण से धरती पर 0.27 प्रति वर्ग मीटर गर्मी में अतिरिक्त वृद्धि हो सकती है। इस अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि ओजोन परत को हानि पहुंचाने वाली गैसों - जैसे सी एफ सी पर प्रतिबंध से ओजोन परत की मरम्मत तो हुई है , किंतु बढ़ते वायु प्रदूषण के साथ मिलकर ओजोन का प्रभाव विगत अनुमान से 40 प्रतिशत अधिक गर्म कर सकता है और यह वृद्धि ओजोन को कार्बन - डाइ - आक्साइड के बाद धरती को गर्म करने वाला दूसरा सबसे बड़ा कारण होगा। 

    अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों द्वारा इसी अवधि के दौरान कार्बन - डाइ- आक्साइड से 1.75 वाॅट प्रति वर्ग मीटर अतिरिक्त गर्मी बढ़ने का अनुमान लगाया गया है। इस अध्ययन से जुड़े मुख्य शोधकर्ता बिल कालिन्स ने अध्ययन के आधार पर बताया है कि सी एफ सी जैसे गैसों पर प्रतिबंध लगाने से यद्यपि कि ओजोन की परत में सुधार होगा, किंतु इसके साथ ही साथ धरती की गर्मी उम्मीद से अधिक बढ़ सकती है।

भारतीय नगरों में भी हो रही है ओजोंन प्रदूषण के स्तर में वृद्धि - 
      यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन से यह भी निष्कर्ष निकाला है कि स्वचालित वाहनों, कारखानों एवं विद्युत गृहों से उत्पन्न होने वाला वायु प्रदूषण धरातल के पास ओजोन भी बनाता है जो स्वास्थ्य के साथ - साथ पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है और सतह के तापमान में वृद्धि भी कर रहा है।

    ग्लोबल वार्मिंग के भविष्य में सतह के पास बनने वाली ओजोंन को नियंत्रित करना मुश्किल हो जायेगा। आई आई खड़गपुर द्वारा किए गए एक अध्ययन के आधार पर इस बात की पुष्टि हुई है कि ओजोंन प्रदूषण से निपटने के लिए यदि पर्याप्त प्रयास नहीं किए गये तो भारत में गेहूं की पैदावार में 20 प्रतिशत की एवं धान की पैदावार में 7 प्रतिशत की कमी आ जायेगी। इसके साथ ही साथ मक्का सहित अन्य फसलें भी प्रभावित होंगी। जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित एक अध्ययन से इस तथ्य की पुष्टि हुई है कि सतह के पास ओजोंन की उपस्थिति  से पेंड़ - पौधों के बढ़ने की गति धीमी पड़ जाती है। अध्ययन से इस बात का भी पता चला है कि वर्तमान समय में दिल्ली की हवा में ओजोंन में वृद्धि हो रही है, जो चिंता का विषय है।

कैसे करें ओजोन परत की सुरक्षा - 
ओजोन कवच की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसी एक देश की नहीं है, कारण कि यह एक भूमण्डलीय पर्यावरणीय समस्या है। किंतु खासतोर से उन देशों की जिम्मेदारी अधिक बढ़ जाती है। क्योंकि ये देश सी एफ सी  गैसों का अधिक उत्पादन एवं उपभोग करते हैं। जिसमें विकसित देश अधिक हैं एवं कुछ विकासशील देश भी हैं।  यही कारण है कि समय - समय पर  सी० एफ० सी० गैसों के उत्पादन को कम करने एवं कार्बन- डाइ- आक्साईड आदि विषैली गैसों के उतसर्जन पर रोक लगायी जाती रही है, जिसका सकारात्मक प्रभाव भी दिखायी दे रहा है। किंतु सबसे अहम् बात यह है कि हमें बिलासितापूर्ण जीवन जीने वाली ऐसी वस्तुओं का कम से कम उपयोग करना  होगा, जिनके निर्माण से ओजोन परत का क्षरण होता है। 

इसका सबक तो हम कोरोना से बचाव हेतु लागू किए गए लाँकडाउन प्रक्रिया से ही ले सकते है। अप्रैल, 2016 के प्रारम्भ से ही उत्तरी ध्रुव के ऊपर ओजोन परत मे लगभग 10 लाख वर्ग किमी० क्षेत्र पर एक छिद्र बना हुआ था,किंतु लाँकडाउन के दौरान जब सारी गतिविधियां बंद हो गयीं, परिवहन बंद हो गया, कल- कारखाने बंद हो गए, मानवीय गतिविधियां बंद हो गयी़ तो ओजोन परत नष्ट करने के लिए उत्तरदायी घातक गैसों का निकला भी बंद हो गया और परिणाम यह निकला कि यह ओजोन का छिद्र भी भर गया। कारण कि लाँकडाउन के दौरान प्रत्येक तरह के प्रदूषण में कमी आ गयी । इस तरह स्पष्ट है कि निश्चित तौर मानव की गतिविधियां ओजोन परत के क्षरण के लिए विशेष तौर पर जिम्मेदार हैं। 

ओजोन परत क्षरण से रक्षा हेतु सबसे आवश्यक यह है कि येन - केन - प्रकार से ग्लोबल वार्मिंग को रोका जाय। परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का निर्माण एवं उपभोग कम कर गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का विकास करना अति आवश्यक है , जिससे की कार्बन का उत्सर्जन कम से कम हो सके और ओजोंन परत की क्षरण में कमी हो सके। वायु प्रदूषण को रोकना भी अति आवश्यक है। यदि ओजोंन परत के क्षरण को नहीं रोका गया तो धरती का विनाश अवश्यंभावी हो जायेगा।

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