Monday, May 26, 2025

भौगोलिक एवं खगोलीय घटना है 'नौतपा': डॉ. गणेश पाठक

ज्योतिषीय एवं पौराणिक महत्व भी है 'नौतपा' का
 वर्तमान समय में उत्तरी भारत एक विशेष भौगोलिक एवं खगोलीय घटना के प्रभाव से गुजर रहा है, जिसे 'नौतपा' कहा जाता है, जिसके प्रभाव से भयंकर गर्मी एवं लू का सामना करना पड़ता है। किंतु जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते इस वर्ष नौतपा के प्रभाव में कुछ विपरीत मौसमी दशाएं दिखाई दे रही हैं। इस वर्ष नौतपा के नौ दिन में से दो दिन गुजर गया, किंतु भयंकर गर्मी या लू का प्रकोप नहीं दिखाई दे रही है, बल्कि आसमान में दो दिनों से लगातार बादल छाए हुए हैं एवं मौसम नम बना हुआ है।

               डॉ. गणेश पाठक (पर्यावरणविद )

 यद्यपि कि पुरूवा हवा के प्रभाव से भयंकर ऊमस का सामना करना पड़ रहा है। हो सकता है कि नोतपा के अंतिम चार - पांच दिनों में भयंकर गर्मी का प्रकोप दिखाई दे। ऐसी परिस्थिति तभी बनेगी जब कि बादल रहित स्वच्छ आकाश हो एवं तेज पछुवा हवा प्रवाहित हो। अर्थात जब पश्चिमी विक्षोभ की स्थिति उत्पन्न होगी तो भयंकर गर्मी एवं लू का प्रभाव हो सकता है। इस भौगोलिक एवं खगोलीय घटना का पौराणिक एवं विशेष ज्योतिषीय महत्व भी है।

भौगोलिक एवं खगोलीय घटना की देन है 'नौतपा' -
    'नौतपा' के शाब्दिक अर्थ से तात्पर्य है नौ दिन की तपन। यदि 'नौतपा' को हम वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो यह एक भौगोलिक अथवा खगोलीय घटना है। इस समय सूर्य 'कर्क रेखा' पर अपनी किरणें सीधी (लंबवत) डाल रहा है और अपने देश में कर्क रेखा  23 अंश 30 मिनट उत्तरी अक्षांश से गुजरती है, जो भारत के मध्य में पड़ता है। यही कारण है पूरे मध्य एवं उत्तरी भारत में भयंकर गर्मी पड़ती है। यद्यपि कि इस समय पृथ्वी से सूर्य अधिकतम् दूरी पर रहता है, किन्तु सूर्य की किरणों के सीधे पड़ने से तापमान बढ़ जाता है। 

यदि देखा जाय तो 23 मई को पृथ्वी से सूर्य की दूरी 15,14,74,849 किमी० रहती है, जो 15 जून को 15,19,60,916 किमी० हो जाती है और फिर क्रमशः घटते हुए 1 जनवरी को 14,70,99721 किमी० हो जाती है। किन्तु दिसम्बर- जनवरी में सूर्य की किरणें 45 अंश डिग्री से तिरछी पड़ती हैं, जबकि आजकल 87अंश डिग्री से सीधी किरणें पड़ती हैं एवं 15 जून तक 90अंश डिग्री तक पड़ने लगेगीं, इसीलिए इस समय एक वर्ग मीटर क्षेत्र पर एक वर्ग मीटर की किरणें सीधी पड़कर तापमान को बढ़ा देती हैं एवं  भयंकर गर्मी तथा लू  का सामना करना पड़ता है। यह स्थिति पूरे 15 दिन तक रहती है , जिसे मृगशिरा या मृग डाह नक्षत्र कहा जाता है, जो इस वर्ष 25 मई से प्रारम्भ होकर 8 जून तक रहेगा, किन्तु शुरू के 9 दिनों में विशेष तपन होती है, इसीलिए इस स्थिति को 'नौतपा' अर्थात नौ दिन तपने वाला कहा जाता है। नौतपा को 'ग्रीष्मकाल का कैलेण्डर' भी कहा जाता है।

'नौतपा' का ज्योतिषीय महत्व-
ज्योतिष के अनुसार जब सूर्य चन्द्रमा के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है तो 'नौतपा' की दशा उत्पन्न होती है। इस नक्षत्र में सूर्य 15 दिनों तक रहता है, किन्तु शुरू के नौ दिनों में ही विशेष तपन होती है, इसलिए इसे 'नौतपा' कहा जाता है। यह स्थिति प्रत्येक वर्ष मई के अंतिम सप्ताह से लेकर जून के प्रथम सप्ताह तक आता है। वृषभ राशि के10 अंश से लेकर 23अंश 40 कला तक की दशा को ' 'नौतपा' कहा जाता है। इस वर्ष नौतपा की शुरूआत 25 मई से लेकर 2 जून तक रहेगा।

'नौतपा' का पौराणिक महत्व -
 नौतपा का पौराणिक महत्व भी देखने को मिलता है। ज्योतिष ग्रंथ 'सूर्य सिद्धांत' एवं 'श्रीमद्भभागवत्'  में नौतपा का वर्णन मिलता है। ऐसा भी माना जाता है कि जबसे ज्योतिष विद्या का विकास हुआ तभी से ज्योतिषियों को नौतपा का ज्ञान था।

इस वर्ष कैसा रहेगा 'नौतपा' में मौसम का मिजाज-
 इस वर्ष 'नौतपा' काल में मौसम का मिजाज मिला - जूला रहेगा। इस वर्ष नौतपा की अवधि 25 मई से 2 जून तक रहेगी। भौगौलिक दशाओं एवं मौसम मानचित्रों के अध्ययन से यह सम्भावना व्यक्त की जा सकती है कि शुरू के तीन - चार दिनों अर्थात 25 मई से 28 जून तक भयंकर गर्मी नहीं पड़ेगी, बल्कि मौसम सामान्य रहेगा। आकाश में बादल छाए रहेंगे और छीट - पुट हल्की वर्षा भी हो सकती है। 

किंतु इस दौरान भयंकर ऊमस का सामना करना पड़ेगा।इस दौरान बलिया एवं पूर्वांचल के जिलों सहित पूरे उत्तर भारत के लोग अभी भीषण गर्मी से राहत में हैं। किंतु यदि नौतपा के अंतिम चार - पांच दिनों में तेज पछुवा हवा का प्रभाव हुआ और आकाश एवं वातावरण साफ रहा तो सूर्य की झुलसाने वाली किरणें काफी तिखे रूपमें धरती पर पड़ेंगी, जिससे जन- जीवन तीन- चार दिन में ही बेहाल हो जायेगा। 

       किन्तु इसी के साथ एक राहत वाली बात भी यह है कि यदि  28 मई के आस - पास यदि उत्तरी भारत में पश्चिमी विक्षोभ दस्तक दे दिया तो उसके प्रभाव से न केवल आँधी आयेगी, बल्कि बारिस भी हो सकती है । इसलिए गर्मी से राहत मिलने की सम्भावना भी बन सकती  है। इसके साथ ही साथ भीषण तपन के कारण इस समय इस क्षेत्र में निम्नदाब का क्षेत्र स्थापित हो जाता है, जिससे समुद्र की नमी भरी हवाएँ भी इधर लपकती हैं, कारण कि समुद्र में उच्चदाब बन जाता है। इस कारण बादल छाए रहेंगे और छिट- पुट वर्षा भी हो सकती है।

 बलिया सहित पूर्वांचल के जिलों में कैसा रहेगा मौसम
यदि हम बलिया सहित पूर्वांचल के जिलों में इस नौतपा काल में मौसम की स्थिति को देखें तो नौतपा के प्रारंभिक दिनों में गर्मी से राहत देने वाला रहेगा। क्यों कि अभी भी पूर्वी हवा प्रवाहित हो रही है एवं आकाश में बादल छाए हुए हैं, जिसका प्रभाव अभी दो - तीन दिन तक रहने की संभावना है। इसके बाद यदि मौसम साफ हुआ और गर्म पश्चिमी हवा प्रवाहित हुई तो भयंकर गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। 

कारण कि इस क्षेत्र में प्राकृतिक वनस्पतियाँ नहीं के बराबर हैं, जिससे तपन में और वृद्धि  हो जाती है। बलिया, गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, वाराणसी , संतरविदास नगर एवं जौनपुर जिलों में कुल क्षेत्रफल के क्रमशः मात्र 0.01, 0.04, 0.31, 0.03, 0.00 एवं 0.17 प्रतिशत ही प्राकृतिक वन क्षेत्र हैं, जो कि नहीं के बराबर है। वहीं चंदौली, मिर्जापुर एवं सोनभद्र जिलों में यह क्रमशः 30.55, 24.14 एवं 47.84 प्रतिशत है। जबकि कुल भूमि के 33 प्रतिशत भाग पर वनों का होना आवश्यक है। किन्तु पश्चिमी विक्षोभ के चलते इन क्षेत्रों में भी राहत मिलने की सम्भावना व्यक्त की जा सकती है।

नौतपा का जीव -जंतुओं पर प्रभाव -
यदि नौतपा के दौरान तपन अधिक होती है तो उसका प्रभाव मानव के साथ - साथ जीव जंतुओं पर भी पड़ता है। नौतपा के पहले दो दिनों में चूहों पर प्रभाव पड़ता है। इन दो दिनों में अगर तपन नहीं होती है तो चूहों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है। इसके बाद नौतपा के तीसरे एवं चौथे दिन अगर तपन नहीं हुई और लू नहीं चली तो टिड्डियों के अंडे नष्ट नहीं होते हैं, जिससे खाद्यान्न को भारी नुक्सान उठाना पड़ता है।
     
 पांचवे एवं छठवें दिन यदि तपन नहीं हुई और लू नहीं चली तो बुखार उत्पन्न करने वाले जीवाणु नष्ट नहीं हो पाते हैं, जिससे बुखार में वृद्धि होती है। और सातवें तथा आठवें दिन यदि तफन नहीं हुई और लू नहीं चली तो सां एवं विच्छू अर्थात विषैले जीव नियंत्रण से बाहर हो जाते है। इसके बाद यदि अगले दो दिन तपन एवं लू का प्रभाव न हो तो उस वर्ष तीव्र आंधियां इतनी आती हैं कि फसलों को भीषण बर्बादी होती है। नौतपा में तपन न होने से खेतों में  जीव - जंतुओं की संख्या में बेतहासा वृद्धि हो जाती है, जिससे फसलों को काफी नुकसान होता है। 

चित्र: सूर्य की सीधी (लम्बवत्) किरणों का सूर्यातप एवं नौतपा पर प्रभाव

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