Sunday, September 24, 2023

विश्व नदी संरक्षण दिवस पर विशेष-

नदियों के संरक्षण हेतु पुनः भगीरथ प्रयास की आवश्यकता
बलिया। अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य एवं जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के पूर्व शैक्षणिक निदेशक पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि  प्रत्येक वर्ष सितम्बर के चौथे रविवार को विश्व नदी दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष यह २४ सितम्बर को मनाया जा रहा है। 
           पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक

विश्व नदी संरक्षण दिवस के अवसर पर डा० पाठक ने बताया कि भारत नदियों का देश है। हमारी सभ्यता एवं संस्कृति का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है। किंतु मानव की भोगवादी प्रवृत्ति, विलासिता पूर्ण जीवन, नदियों पर बनाए जा रहे बड़े बांधों एवं बड़ी -बड़ी नहरों को निकालने से नदियों की अविरलता एवं निर्मलता बाधित होती जा रही है। नदियों का जल प्रदूषण एवं पारिस्थितिकी असंतुलन का शिकार हो गया है जिससे नदियो का जल अब स्नान करने लायक भी नहीं रह गया है। नदियों के संरक्षण हेतु आज पुनः हमें भगीरथ प्रयास की आवश्यकता है।

  आज की इस विषेश भेंटवार्ता में डा० पाठक नेखासतौर से गंगा नदी के प्रदूषण एवं पारिस्थितिकी असंतुलन के बारे में  जोर देते  हुए कि गंगा मात्र जल स्रोत के रूप में हमारे लिए जल संसाधन ही नहीं है, बल्कि गंगा हमारी माँ है और माँ हमारा भरण- पोषण करके समारा समग्र विकास करती है। इसलिए माँ गंगा हमारा समग्र विकास करती है। गंगावासियों की जीवन की कहानी माँ गंगा से शुरू होकर माँ गंगा में ही समाप्त होती है। माँ गंगा हमारी सभ्यता एवं संस्कृति की पहचान है। किंतु सबका भरण- पोषण करने वाली माँ गंगा आज हमारे स्वार्थपरक कार्यों के चलते एक तरफ जहाँ प्रदूषण से बेहाल है, वहीं दूसरी तरफ जलस्रोत का अबाध गति से प्रवाह एवं उसकी निरन्तरता भी बाधित हो गयी है। 

  आज गंगा की जल पारिस्थितिकी, जीव पारिस्थितिकी, मृदा( मिट्टी) पारिस्थितिकी एवं पादप( वनस्पति) प्रदूषण के कारण असंतुलित होती जा रही है। अर्थात् गंगा घाटी की सम्पूर्ण पारिस्थितिकी ही असंतुलन का शिकार हो रही है, जिसके चलते गंगा घाटी एवं गंगा जल क्षेत्र में रहने वाले जीव- जंतुओं, वनस्पतियों, मिट्टी एवं जल के लिए संकट की स्थिति उत्पन्न होती जा रही है। उद्योगों से गिरने निकलने वाला मलवा बिना उपचारित किए गंगा में गिराया जा रहा है, नगरों से निःसृत कचरा एवं मल- जल भी बेरोक -टोक गंगा में गिराया जा रहा है, कृषि के लिए प्रयुक्त रासायनिक खाद,जीव- जंतु नाशक एवं खरपतवार नाशक विषैली दवाएँ मिट्टी में मिलने के बाद वर्षा जल के प्रवाह के साथ गंगा नदी में मिल रहा है। इन सबके चलते गंगा का जल निरन्तर प्रतूषित होता जा रहा है और बड़- बड़े बाँधों तथा जलाशयों के निर्माण ने गंगा के जल को रोक दिया है, जिससे गंगा जल का प्रवाह बाधित हो गया है। इन सबके चलते गंगा के प्रवाह क्षेत्र में गाद(शिल्ट) का जमाव होता जा रहा है,जिससे नदी तल उथला होता जा रहा है और नदीक्षजल में रहने वाले जीवों के लिए संकट उत्पन्न होता जा रहा है। सखथ ही साथ प्रवाह तल उथला होने से जल फैलकर बाढ़ की भी स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है।

यद्दपि कि गंगा को स्वच्छ एवं गतिमान करने हेतु अब तक अरबों रूपये की योजनाएं क्रियान्वित की जा चुकी है,किंतु ये योजनाएं अपने यथेष्ट उद्देश्य में पूर्णतः सफल नहीं हो पायी है। किंतु यह भी सच है कि गंगा को स्वच्छ करना सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है,हमारी(आम जनता ) की भी जिम्मेदारी होनी चाहिए। आइए आज विश्व नदी संरक्षण दिवस पर यह शपथ लें कि येन- केन- प्रकारेण हम गंगा को स्वच्छ बनाए रखें।हाँ यदि हम नदियों को प्रदूषित करना छोड़ दें तो नदियों में इतनी क्षमता है कि वो स्वयं शुद्ध हो जायेंगी।

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