गंगा समग्र गोरक्ष प्रान्त, इकाई बलिया द्वारा 'विश्व नदी दिवस महोत्सव' का किया गया आयोजन
बलिया। विश्व नदी दिवस के शुभ अवसर पर गंगा समग्र गोरक्ष प्रान्त, इकाई बलिया द्वारा अत्यन्त धूम - धाम से दिव्य एवं भव्य रूप में 'विश्व नदी दिवस महोत्सव' का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता 'गंगा समग्र' के राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय अमरेन्द्र प्रसाद सिंह ने किया, जबकि मुख्य अतिथि पूर्वी क्षेत्र (उ०प्र०) के क्षेत्रीय बौद्धिक प्रमुख माननीय मिथिलेश जी रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में गोरक्ष प्रान्त के प्रान्त कार्यवाह एवं गंगा समग्र के पालक विनय जी एवं गोरक्ष प्रान्त के गंगा समग्र के संयोजक राजकिशोर मिश्र जी रहे।
इस अवसर पर भजन गायन हेतु प्रसिद्ध भजन गायिका लाडली किशोरी जी ने गोष्ठी प्रारम्भ होने से पूर्व अपने सुमधुर भजनों के गायन से उपस्थित जनसमूह को मंत्र मुग्ध कर दिया। कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रीय अध्यक्ष अमरेन्द्र प्रसाद सिंह, मुख्य वक्ता मिथिलेश जी, राजकिशोर मिश्र जी, गंगा समग्र के जिला संयोजक धनंजय उपाध्याय एवं कार्यक्रम के संयोजक अजय कुमार तिवारी, एडवोकेट द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर एवं मां गंगा के चित्र पर माल्यार्पण कर तथा पुष्प अर्पित कर किया गया। इस अवसर पर लगभग तीन हजार गंगा भक्त उपस्थित रहे।
गोष्ठी के प्रारम्भ में गंगा समग्र गोरक्ष प्रान्त के संयोजक राजकिशोर मिश्र जी द्वारा गंगा समग्र संगठन की स्थापना के उद्देश्यों एवं कार्यक्रमों पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए गंगा महोत्सव मनाने की सार्थकता पर भी विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। इसके बाद विशिष्ट अतिथि विनय जी अपने उद्बोधन में कहा कि हमारा एक मात्र लक्ष्य मां गंगा को पतित -पावन, निर्मल एवं अविरल बनाना है। इसके लिए जन -जन का सहयोग एवं सहभागिता आवश्यक है।
बतौर मुख्य वक्ता माननीय मिथिलेश जी ने अपने उद्बोधन में गंगा नदी की वर्तमान दशा एवं दुर्दशा पर विस्तृत प्रकाश डाला। गंगा की दुर्दशा को देखते हुए एवं प्रदूषण से उत्पन्न समस्याओं को देखते हुए ही गंगा को प्रदूषण मुक्त कर निर्मल एवं अविरल प्रवाहमान बनाने हेतु ही वर्ष 2011 में राष्ट्रीय स्तर पर "गंगा समग्र" संगठन को अस्तित्व में लाया गया। इसके साथ ही साथ पर्यावरण को सुरक्षित एवं संरक्षित रखते हुए सम्पूर्ण प्रकृति की रक्षा करना एवं इसके लिए अधिक से अधिक पौधारोपण पर वृक्ष आवरण को बढ़ाना है, ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से भी इस पृथ्वी की रक्षा हो सके। मुख्य अतिथि ने बताया कि गंगोत्री से गंगासागर तक यात्रा कर गंगा की दशा एवं दुर्दशा का मेंने अध्ययन किया और जन - जन से मिलकर विचार - विमर्श भी किया। सम्पूर्ण भारत में मां गंगा के प्रति जो आस्था भाव है , वह अपने - आप में बेजोड़ है किन्तु यह भी सत्य है कि मां गंगा की दुर्दशा के लिए भी हम स्वयं जिम्मेदार हैं। हमारे अन्दर मां गंगा की आस्था रहते हुए भी हम अनेक तरह से मां गंगा के जल को दूषित कर रहे हैं, किंतु उसे स्वच्छ रखने हेतु जरा भी विचार-भाव अपने अंदर नहीं ला रहे हैं।
मुख्य वक्ता ने यह भी कहा कि वर्तमान समय में सांस्कृतिक विरूपता एवं विद्रूपता बढ़ती जा रही है। हमारी संस्कृति को नष्ट करने का कुचक्र चल रहा है। हमारे रहन - सहन, हमारी बोल - चाल में इस कदर बदलाव आता जा रहा है कि हम पूरी तरह पश्चिमी सभ्यता के रंग में सराबोर होकर अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को भूलते जा रहे हैं, जो देश के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। अनेक उदाहरणों को प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि आज भजन में भी भक्ति भाव कम होता जा रहा है एवं आसक्ति बढ़ती जा रही है।जब कि भजन में आसक्ति नहीं आनी चाहिए।
माननीय मुख्य वक्ता ने कहा कि गंगा के प्रति यदि भक्ति -भाव है तो गंगा को प्रदूषित होने से बचाइए। गंगा में गंदगी न फेंकें, कचरा न फेंके, अधजले शव प्रवाहित करें, प्लास्टिक न डालें अर्थात् यों समझिए कि किसी भी तरह की गंदगी गंगा में न डालें। मुख्य वक्ता ने यह भी कहा कि जीवन का आधार या यों कहें कि सृष्टि का आधार "क्षिति, जल , पावक, गगन, समीर" है। ये पांच मूलभूत तत्व हैं। किंतु आज इनके ऊपर भी संकट आता जा रहा है। यदि ये तत्व नष्ट हो गए तो सृष्टि का भी विनाश होते देर नहीं लगेगी।
अंत में मुख्य वक्ता ने पांच मंत्र बताए जिसके आधार पर हम मां गंगा को भी सुरक्षित रख सकते हैं एवं हमारी संस्कृति भी अक्क्षूण बनी रहेंगी -
1. हम बदलेंगे, युग बदलेगा।
2. सुरक्षित सनातन, सुरक्षित परिवार, संस्कारित परिवार होना चाहिए। हमारा सनातन आधुनिकता एवं नग्नता के भार से दबता जा रहा है, इससे बचना होगा। छुआ - छूत आधुनिक रोग है, इससे भी बचना होगा।
3. हमें हर हाल में पर्यावरण को बचाना होगा। प्राणी जगत को बचाना होगा। पर्यावरण संरक्षण की शुरुआत अपने घर - परिवार से करना होगा।
4. अपने अंदर स्व का बोध लाना होगा। किंतु यह स्व का बोध भारतीय संस्कृति में रचा - बसा होना चाहिए। भारतीय संस्कृति को बचा कर रखना होगा।
5. हमें नागरिक शिष्टाचार का पालन करना होगा। यदि हमारे अंदर शिष्टाचार नहीं है तो हमारा कभी भी विकास नहीं हो सकता। हम कहीं भी अपने को समायोजित नहीं कर सकते हैं।
कार्यक्रम के अध्यक्ष अमरेन्द प्रसाद सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि जब कोई समस्या होती है तो उसका समाधान खोजा जाता है। गंगा समग्र की स्थापना मां गंगा बढ़ रहे प्रदूषण एवं उसकी समाप्त होती निर्मलता एवं अविरलता से उत्पन्न समस्या के सामाधान कू उद्देश्य से की गयी। गंगा समग्र के कार्यकर्ता अत्यन्त समर्पित हैं, जिनके बदौलत आज गंगा मां में प्रदूषण की कमी हुई है तथा उसकी निर्मलता एवं अविरलता भी बढ़ी है, किंतु हमें इसका स्थाई समाधान ढूंढना होगा। हमें और अधिक समर्पित भाव से कार्य करना होगा।
कार्यक्रम का संचालन कुंवर सिंह महाविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के अन्यक्ष प्रो० रामकृष्ण उपाध्याय ने किया। अंत में कार्यक्रम के संयोग एवं गंगा समग्र के जिला संयोजक ने समवेत रूप से सभी आगंतुकों के प्रति आभार प्रकट किया। गोष्ठी के समापन के पश्चात सायं 6 बजे से रात्रि 8 बजे तक वाराणसी से पधारे गंगा आरती के विशेषज्ञ 11 पंडितों द्वारा मां गंगा के किनारे मां गंगा की दिव्य - भव्य रूप में आरती की गयी, जिसमें लगभग तीन हजार गंगा पुरूष एवं माताओं ने अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर पुण्य की भागी बनी।
कार्यक्रम के सफल आयोजन में गंगा समग्र गोरक्ष प्रांत के शैक्षिक आयाम प्रमुख डाॅ० गणेश कुमार पाठक, देव नारायण पाण्डेय, राजेश्वर गिरी, राजनारायण तिवारी, विजय राज जी, विभाग प्रचारक अम्बेश जी, जिला प्रचारक अखिलेश्वर जी, नगर प्रचारक प्रवीण जी, भारती सिंह, अर्जुन शाह, धर्मवीर उपाध्याय, रसड़ा से पधारे सभी गंगा समग्र कार्यकारिणी के सदस्य, दिलीप जी, राजेश महाजन, अजय राय, सुभाषिनी तिवारी, मदन मोहन सिंह, विमल राय, सुरेन्द्र नाथ दूबे, पवन कुमार, शशिभूषण चौबे, राम प्रकाश पाठक आदि गणमान्य लोगों सहित गंगा समग्र के सभी सदस्य उपस्थित रहे।
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