तुलसीदास जयंती पर बापू भवन मे आयोजित हुआ समारोह
बलिया। मुग़ल शासनकाल में भारतीय संस्कृति, संस्कार और मानवीय आदर्शों को संरक्षित करने में गोस्वामी तुलसीदास की कृति रामचरित मानस ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ब्रिटिश शासनकाल में मारिशस, टोबेगा, त्रिनिदाद, फिजी, ब्रिटिश गुयाना डच गुयाना आदि देशों ले जाये गए गिरमिटिया कामगार अपने साथ रामचरित मानस लेकर गए थे। जिसके कारण यहाँ भारतीय रामायण जीवन पद्धति की प्रेम, करुणा, सेवा, परमार्थ का प्रसार हुआ।
उक्त उदगार विद्वानों ने अन्तरराष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान अयोध्या, संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा बापू भवन क्रांति मैदान मे रविवार को तुलसीदास जयंती पर आयोजित समारोह में व्यक्त किए।
दीप प्रज्ज्वलन, पुष्पार्चन और रामचरित मानस पाठ से प्रारंभ हुये समारोह में सारस्वत सम्मान से डाॅ. जनार्दन चतुर्वेदी कश्यप, श्रीमती राधिका तिवारी, विंध्याचल सिंह, लल्लन देहाती, डा.कादंबिनी सिंह, रमेश चंद श्रीवास्तव, शिवजी पाण्डेय रसराज, भोजपुरी भूषण नन्दजी नंदा, हीरालाल यादव 'हीरा', बिशुनदेव पाण्डेय और फतेहचंद बेचैन का सम्मानित किया गया।
रामचरित मानस गान जागरुक शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान के विजय प्रकाश पाण्डेय, पंकज कुमार, काशी ठाकुर, छोटेलाल प्रजापति और दल ने मानस पाठ और भजन प्रस्तुत किए। वही इस मौके पर आयोजित कवि सम्मेलन में शिवजी रसराज ने वेद ऋचा में रमने वाली, सप्त स्वरों को जनने वाली, वीणा के सरगम से निकले षष्ठ राग औ रागिनी..रचना प्रस्तुत की। वही लल्लन देहाती ने .. हाँ बसा लूंगा, अपनी रुह मे मैं तो, जिद ये मेरी वाजिब है, हक मेरा पुराना है। डाॅ. कादम्बिनी सिंह ने हम त रामजी के नेहिया मे अझुराइल बानी, अजोधा में आइल बानी ना, को प्रस्तुत किया। राधिका तिवारी ने सोहर. राजपुर नगरी के कगरी, जहंवा जनमल एक बालक हो रामा.. गाकर तुलसीदास को याद किए।
इस दौरान रमेश चन्द श्रीवास्तव की पुस्तक सरिता का विमोचन किया गया। समारोह की अध्यक्षता महर्षि अशोक जी और संचालन डाॅ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने किया। आभार संस्थान के सचिव अभय सिंह कुशवाहा ने व्यक्त किया।
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