चाक- चौबंद सुरक्षा के साथ पूरे उत्साह से जिले में परम्परागत रुप में निकलेंगे जुलुस
बलिया। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की दासता से मुक्ति के लिये किशोरवय विद्यार्थियों के विप्लव की इस घटना के बारे में इतिहासकार डाॅ.शिवकुमार सिंह कौशिकेय बताते हैं कि तत्कालीन ब्रिटिश कलेक्टर मिस्टर जाॅप्लिन अपने नये किंग जार्ज पंचम की ताजपोशी के जश्न को शानदार तरीके से मनाने के लिये बहुत उत्साहित थे। स्कूलों में बच्चों से आठ-आठ आना जमा कराया जा रहा था।
गवर्नमेंट स्कूल के प्रिंसिपल तारा बाबू भी देशभक्त थे लेकिन सरकारी नौकर हाकिम के हुक्म को कैसे टाल सकता था। यहाँ भी बच्चों ने अठन्नी जमा किए, जिसके बदले सभी बच्चों को जार्ज पंचम के फोटो वाला तमगा दिया गया। जिसे लगाकर जुलुस में शामिल होना था। लेकिन बागी बलिया के लाल जगन्नाथ सिंह के दिमाग में बाल गंगाधर तिलक का विद्रोह चल रहा था।
डाॅ.कौशिकेय कहते हैं कि जगन्नाथ सिंह उस तमगे को जूते के फीते में बाँधकर स्कूल पहुँचें, यह बात स्कूल से निकलकर कलेक्टर और तत्कालीन पुलिस सुपरिटेंडेंट तक पहुँचीं। जगन्नाथ सिंह का निष्कासन हुआ और खूब डराया धमकाया गया।
डाॅ.कौशिकेय बताते हैं कि यही घटनाक्रम बलिया जिले में महाबीरी झण्डा जुलुस निकालने की परम्परा का कारण बनीं । गवर्नमेंट स्कूल में "विद्यार्थी परिषद" नाम से विद्यार्थियों का संगठन बनाया गया। जिसमें ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह के रुप में आदित्य राम मंदिर से महाबीरी झण्डा जुलुस निकालने का निश्चय किया गया। जिस दिन ब्रिटिश साम्राज्य की ताजपोशी का जुलुस शहर की सड़कों पर निकला उसी दिन आदित्य राम मंदिर से बड़े से बाँस में लाल कपड़े पर वंदेमातरम और तिलक महाराज की जै लिखे झण्डे के साथ महाबीरी झण्डा जुलुस निकालकर सीधी चुनौती दी गयी।
बंग भद्रौ बंधुओं पंजाब सबका संग है।
आज चारों देश में दृढ़ एकता रंग है।
युक्त देश समेत ही समवेत होकर सादरम्।
सब मिलिके बोलो प्रेम से अब क्यों न वंदेमातरम।
यह गीत गाते हुए, भारतमाता की जय, वंदेमातरम, तिलक महाराज की जै के नारे लगाते हुए आजादी के दीवानों द्वारा पूरे शहर का भ्रमण किया गया। कालांतर में यह महाबीरी झण्डा जुलुस ब्रिटिश सरकार के विरोध का प्रतीक बन गया और जिले भर में यह निकाला जाने लगा।
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