चार साहिबज़ादों के बलिदान को समर्पित वीर बाल दिवस कार्यक्रम का हुआ आयोजन
बलिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बलिया के बाल कार्य विभाग के तत्वावधान में चार साहिबज़ादों के बलिदान को समर्पित वीर बाल दिवस कार्यक्रम का आयोजन 25 दिसंबर दिन बुधवार को बलिया शहर के टीडी कलेज व कुंवर सिंह चौराहा के बीच में स्थित चंद्रशेखर उद्यान में सम्पन्न हुआ, जिसमें हजारो की संख्या में विद्यालय में पढ़ने वाले बाल स्वयंसेवकों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम में गुरु गोविंद सिंह, पंच प्यारे व अन्य वीर बालकों के रूप धरे बालक सबके आकर्षण का केन्द्र बन थे।
मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गोरक्षप्रान्त के प्रांत प्रचारक रमेश व कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे गुरुद्वारा प्रबन्ध समिति बलिया के पूर्व प्रधान सरदार श्रवण कुमार सिंह द्वारा गुरु गोविंद सिंह व पांच साहिबजादों के चित्र पर पुष्पार्चन व दिप प्रज्ज्वलन के साथ वीर बल दिवस कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। दिव्यांश द्वारा गीत के बाद मुख्य अतिथि प्रान्त प्रचारक रमेश जी का पाथेय प्राप्त हुआ। इस अवसर पर बोलते हुए प्रान्त प्रचारक रमेश ने बताया कि सिख परम्परा के दशम गुरु, गुरु गोविन्द सिंह महाराज के पुत्र बाबा फतेह सिंह, बाबा जोरावर सिंह का बलिदान दिवस मनाने के लिए यहां हम सभी एकत्रित हुए हैं। दोनों वीर बालकों का बलिदान केवल एक दिन का कार्यक्रम मात्र नहीं है, वह बलिदान आज की नई पीढ़ी के लिए था। आज के नये भारत के लिए है। वो दोनों वीर बालक हमारे लिए प्रेरणा पुंज है। जिस 6 और 8 वर्ष की उम्र में आज के बच्चे खिलौनों और उनके परिवार पश्चिम को महान बताने में व्यस्त है उन दोनों बालकों ने अपने धर्म की रक्षा के लिए स्वयं को दीवारों में चुनवा लेना ठीक समझा। जब दीवारों में चुने जा रहे थे तब दोनों बालकों के चेहरों पर मुस्कुराहट थी और मुगलों के चेहरे पर खौफ। इतनी कम उम्र में उनका साहस अपने धर्म, परम्परा, सभ्यता के प्रति चिन्तन देख लगता है कि ईश्वर इन दोनों बालक के रूप में मुगलों की जड़ को हिला डालने के लिए अवतरण लिया था।
उन्होंने आगे बताया कि आज से सैकड़ों साल पूर्व क्रूर मुगल शासक औरंगजेब का नवाब वजीर खां ने गुरु गोविन्द सिंह के दोनों पुत्रों पर फतवा जारी किया। फतवे में लिखा, ये बच्चे बगावत कर रहे हैं, इसलिए इन्हें जिन्दा ही दीवार में चुनवा दिया जाये'। औरंगजेब ने इनको इस्लाम मनवाने के लिए हर वो नाकाम प्रयास किया। औरंगजेब ने किले की सबसे ऊँची दीवार पर कंपकपाती ठण्ड में दोनों बच्चों को नंगा करके रखा, लालच दिया, मौत का खौफ दिखाया साथ ही अन्य कई तरीकों से प्रताड़ित किया लेकिन फिर भी इन दोनों बच्चों ने इस्लाम धर्म को नहीं अपनाया। नवाब वजीर खां ने दोनों बालकों से पूछा बोलो इस्लाम कुबूल करते हो? छोटे साहिबजादे फतेह सिंह जी, जिनकी आयु मात्र 6 वर्ष थी, ने पूछा 'अगर मुसलमान हो गए तो फिर कभी नहीं मरेंगे न? इतने कम उम्र के छोटे बालक के मुंह से यह सुनकर वजीर खां अवाक रह गया उसके मुंह से जवाब न फूटा। तब साहिबजादे ने जवाब दिया कि जब मुसलमान होकर भी मरना ही है तो अपने ही धर्म में अपने धर्म की ख़ातिर क्यों न मरें। तब दोनों साहिबजादों को दीवार में चिनवाने का आदेश हुआ।
उन्होंने आगे बताया कि जब दीवार चीनी जाने लगी और जब दीवार 6 वर्षीय फतेह सिंह जी की गर्दन तक आ गयी तो आठ वर्षीय जोरावर सिंह रोने लगा तब फतेह सिंह ने पूछा, 'जोरावर रोता क्यों है?' तब जोरावर बोला, 'मैं रो इसलिए रहा हूँ कि इस जग में आया मैं पहले था पर धर्म के लिए बलिदान तू पहले हो रहा है। उन्होंने आगे बताया कि उसी रात माता गूजरी ने भी ठंडे बुर्ज में अपने प्राण त्याग दिए। उन्होंने आगे बताया कि औरंगजेब ने गुरु गोविन्द सिंह को हराने के लिए 'कुरान' की झूठी कसम खाई। गुरु गोविन्द सिंह को लिखे खत में औरंगजेब ने कहा था- 'मैं कुरान की कसम खाता हूँ, अगर आप आनन्दपुर का किला खाली कर दें, तो बिना किसी रोक-टोक के यहाँ से जाने दूँगा।' गुरु गोविन्द सिंह को इस बात का अन्दाजा था कि औरंगजेब अपनी बात से मुकर सकता है, इसके बावजूद उन्होंने किले को छोडऩा स्वीकर किया और फिर वही हुआ जिसका डर था। मुगल सेना ने गुरु गोविन्द सिंह और उनकी सेना पर आक्रमण कर दिया। सरसा नदी के किनारे लम्बा युद्ध चला और गुरु गोविन्द सिंह का परिवार बिछड़ गया।
उन्होंने आगे बताया कि आज इस देश मे औरंगजेब और इस्लाम के नाम पर राजनीति करते बहुत से सेक्युलरिज्म के महारथी को देखा गया है। ऐसे बड़ी संख्या में मुस्लिम मतालम्बी हैं जो औरंगजेब को अपना हीरो मानते है आदर्श मानते है। इस अवसर पर बोलते हुए उन्होंने अनेक वीरों की वीरता के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि यह धरती वीरों की वीरता की कहानियों से भरी पड़ी है। ऐसे वीर बालकों में प्रमुखता से फतेह सिंह-जोरावर सिंह थे जो आने वाली युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बने। उन्होंने बताया कि मेरा मानना है हम जैसा हीरो चयन करेंगे हमारा व्यक्तित्व, व्यवहार वैसा ही होगा। हमारी सोच वैसी ही होगी। हम उसी दिशा में कार्य करेंगे।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सरदार श्रवण कुमार सिंह ने वीर साहिबजादों की वीरता के साथ सिक्ख गुरुओं के तप, त्याग व देशप्रेम के बारे में विस्तार से बताया। अतिथियों का परिचय सूरज ने कराया।
इस अवसर पर सह नगर संघचालक परमेश्वरनश्री, जिला प्रचारक अखिलेश्वर, जिला कार्यवाह अरुण मणि, सह जिला कार्यवाह सौरभ पांडेय, सेवा प्रमुख डॉ. सन्तोष तिवारी, जिला संयोजक पर्यावरण संरक्षण गतिविधि मारुति नन्दन, जिला बाल कार्य प्रमुख आशीष तिवारी, विवेक, चन्द्रशेखर, उमेश, गणेश तिवारी, बाल्मीकि, श्रेयांश, मोहित पांडेय, अव्यांश, पंकज आदि के साथ सैकड़ों की संख्या में बालक व गणमान्य बन्धु उपस्थित थे।