मार्च निकाल किया गया पुतला दहन
बलिया। अपने स्थापना के समय से ही स्वदेशी जागरण मंच भारत के आर्थिक और सामरिक हितों के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय नीतियों, संस्थाओं और देशों का विरोध करता रहा है। भारत के आर्थिक हितों के विरुद्ध WTO की नीतियों का विरोध WTO के मंच पर ब्रिक्स जैसी संस्थाओं के माध्यम से भारत करता रहा है। जीविका के क्षेत्र जैसे कृषि और पशुपालन से संबंधित समझौतों पर स्वदेशी जागरण मंच सदैव सरकारों को चेताया है। खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश के विरुद्ध मंच का अभियान इसका प्रमाण है। ई-कॉमर्स के क्षेत्र में अमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी भीमकाय बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विरोध का अभियान अभी भी प्रगति पर है।ऐसी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत के लगभग 6 करोड़ छोटे व्यापारी परिवारों की आजीविका के लिए खतरा बनते जा रहे हैं।
स्वदेशी जागरण मंच द्वारा भारत विरोधी देशों के उत्पाद, निवेश और अन्य आर्थिक संबंधों के पूर्ण बहिष्कार, अमेजॉन, फ्लिपकार्ट जैसी अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बहिष्कार के लिए एक प्रदर्शन का आयोजन किया गया। झंडा बैनर लिए मंच के सैकड़ो कार्यकर्ता और व्यापारी बलिया रेलवे स्टेशन मोड पहुंचकर उनके विरुद्ध जमकर नारेबाजी की।
प्रदर्शन में स्वदेशी जागरण मंच के उत्तर प्रदेश उत्तराखंड के विचार विभाग प्रमुख प्रोफेसर शर्वेश पांडे जी, राष्ट्रीय परिषद के सदस्य और गोरक्ष प्रांत संपर्क प्रमुख वंश नारायण राय, प्रांत प्रचार प्रमुख गिरिजेश पांडे, सह विभाग संयोजक शशिकांत तिवारी, जिला संयोजक आनंद सिंह, सह जिला संयोजक राजू सिंह, जिला समन्वयक अखिलेश तिवारी, सह जिला समन्वयक धनंजय सिंह, महिला समन्वयक श्रीमती संध्या पांडेय, श्रीमती वीना शुक्ला, नरहेजी महाविद्यालय के प्रबंधक श
गोपाल सिंह, विश्व हिंदू परिषद के जिला अध्यक्ष एवं गोरक्ष प्रांत के सचिव मंगल देव चौबे, सिविल वार बलिया के पूर्व महामंत्री धीरेंद्र तिवारी, वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश्वर गिरी, सरकारी अधिवक्ता एवं अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष विनय सिंह, भोला सिंह, संतोष दुबे, लक्ष्मण सिंह, सुधाकर, दिवांशु, राजेश तिवारी, नकुल चौबे, सहदेव चौबे, धनंजय पाण्डेय, संतोष दूबे, अवनीश उपाध्याय आदि उपस्थित रहे।
उल्लेखनीय हैं कि भारत के विदेशी व्यापार में लगभग 100 अरब डॉलर का घाटा केवल चीन के साथ है। सस्ते चीनी माल के आगे विवस भारतीय उत्पादकों को सशक्त बनाने के लिए मंच बहुत पहले से ही चीनी वस्तुओं और निवेश को नियंत्रित करने हेतु जन जागरण अभियान चला रहा है। डोकलाम में भारत और चीन की सेनाओं के बीच संघर्ष के समय से ही चीनी संचार उपकरणों और इलेक्ट्रानिक उत्पादों के बहिष्कार का आंदोलन देश भर में चलाया गया। व्यापार में लाभ हानि तो सामान्य बात है पर व्यापार के लाभ का उपयोग जब चीन भारत के सामरिक हितों पर कुठाराघात हेतु करने लगा तब ''एक धक्का और दो चीन का मुंह तोड़ दो "जैसा नारा देश में खूब प्रचलित हुआ।
चीन स्वयं तो भारतीय सुरक्षा चुनौतियों को बढ़ाता ही है वह सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पड़ोसी देश पाकिस्तान को भी सहायता और संरक्षण देता है अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ मुहिम में आतंकवाद को सामरिक नीति के रूप में प्रयोग करने वाले पाकिस्तान का साथ देकर चीन हमेशा भारतीय हितों को नुकसान पहुंचता है। पाकिस्तान की 80% रक्षा जरूरत को पूरा करने वाला चीन टैरिफ वार में एक तरफ भारत से दोस्ती करना चाहता है और दूसरी ओर भारत को अशांत कर विकास की गाड़ी को रोकने के लिए पाकिस्तान के आतंकवाद को खाद्य पानी देता है । इसलिए इस संक्रमण काल में "मुख में राम बगल में छुरी" वाले चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। स्वतंत्रता के पश्चात सभी सरकारों ने चीन के साथ संबंधों को दोस्ताना बनाने का प्रयास किया है पर हर बार चीन ने पाकिस्तान की तरह ही भारत की पीठ में छुरा घोंपा है। चीन की ही तरह तुर्किये भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का साथ देने में आनाकानी करता रहा है।
स्वतंत्रता से पूर्व 1920 से ही भारत तुर्किये से दोस्ती का प्रयास करता रहा है। भारत 1920 में तुर्की के स्वतंत्रता का मुखर समर्थक था। 1948 से दोनों देशों के बीच राजनीतिक संबंध स्थापित हुए और भारत के लगभग सभी राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री लोकसभा के स्पीकर और अन्य महत्वपूर्ण नेता तुर्किये का दौरा करते रहे । शिक्षा के क्षेत्र में जेएनयू, जामिया मिलिया एवं अन्य अनेक विश्वविद्यालयों ने तुर्किये के विश्वविद्यालयों के साथ समझौता किया है और पर्यटन की दृष्टि से भी भारतीयों के लिए तुर्किये एक महत्वपूर्ण गंतव्य बन गया है। इधर तैय्यप आर्दोगन जो कि अपने को इस्लामी दुनिया का खलीफा मानते हैं, के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद तुर्किये के साथ भारत के संबंधों में तल्खी बढ़ गई है। केवल धार्मिक आधार पर तुर्किये और अजरबैजान जैसे देश पाकिस्तान का प्रत्येक स्तर पर समर्थन करते हैं। 2023 में तुर्किये में आए प्रलयंकारी भूकंप में "ऑपरेशन दोस्त " के तहत सबसे पहले रसद, दवाइयां, डॉक्टर के साथ एनडीआरएफ की टीम भारत द्वारा भेजी गयी। स्थान स्थान पर कैंप लगाकर और अस्थाई अस्पताल खोलकर भारत ने तुर्किये को उसे संकट से निकलने में महत्वपूर्ण सहायता की। परंतु पहलगाम आतंकी हमले के बाद जिसमें 26 मासूम पर्यटकों की निर्मम हत्या पाकिस्तान पोषित आतंकियों द्वारा की गई थी और भारत पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को नष्ट करने की (आपरेशन सिंदूर) की तैयारी कर रहा था तब एर्दोगन पहले राष्ट्राध्यक्ष थे जिन्होंने पाकिस्तान का दौरा किया और उसे हर संभव सहायता का आश्वासन दिया। संघर्ष बढ़ने पर तुर्किये ने पाकिस्तान को ड्रोन और अन्य युद्ध सामग्री भी उपलब्ध कराया और भारत की दोस्ती के प्रयास की अनदेखी करते हुए भारत की पीठ में छुरा घोंपा।
वैसे तो भारतीय सेनाओं ने चीन के एयर डिफेंस सिस्टम और तुर्की अजरबैजान के ड्रोनों के परखच्चे उड़कर माकूल जवाब दिया है परंतु भारत की जनता को भी अपने स्तर से तुर्की , चीन और अजरबैजान को मुंहतोड़ जवाब देने का यह माकूल समय है। चीन तुर्किये और अजरबैजान जैसे देशों का संपूर्ण आर्थिक बहिष्कार कर यह कार्य किया जा रहा है। तुर्की और अजरबैजान जाने वाले पर्यटकों की संख्या में अभूतपूर्व कमी हुई है, सरकार की तरफ से भी अनेक कदम उठाए जा रहे हैं।
रिपोर्ट: विक्की कुमार गुप्ता
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