कहा: आग बरसाने वाली गर्मी भी है आवश्यक
बलिया। रोहिणी नक्षत्र का नौतपा की गर्मी से बेहाल हैं तो प्रकृति का नियम भी जानना जरुरी है। इस संबंध में डाॅ.शिवकुमार सिंह कौशिकेय बताते हैं कि एसी कूलर कल्चर ने लोगों का मिजाज बदल दिए हैं। इस झुलसाने वाली गरमी का संबंध जीवन से जुड़ा हुआ है।
श्री कौशिकेय ने कहा कि ज्येष्ठ महीने के रोहिणी नक्षत्र में सूर्य अपने नौतपा से क्या करता है इसे समझिए।
दो मूसा दो कातरा, दो तीड़ी दो ताय।
दो की बादी जल हरै, दो विसधर दो वाय।
अर्थात नौतपा के पहले दो दिन का ताप चूहों की आबादी को नियंत्रित करता है, इसके बाद दो दिन का ताप कातरा फसलों को नष्ट करने वाले कीटों के अंडजों को नष्ट करता है , अगले दो दिन की गर्मी में टिड्डियों के अंडे को समाप्त करती है। इसके आगे दो दिन का ताप बुखार के विषाणुओं को जला कर मार डालता है। इसके अगले दो दिन की तपती गर्मी में विषधर जीवों साँप बिच्छू की आबादी नियंत्रित होती है और अगले दो दिन का लू और ताप आँधी को नियंत्रित करता है।
डाॅ.कौशिकेय ने कहा कि अपनी सभ्यता संस्कृति से अनजान लोग प्रकृति के इको सिस्टम को नही समझ रहे हैं। उस पर तुर्रा यह है कि वातानुकूलित कमरों में बैठकर सलाह देने वाले लोग ग्लोबल वार्मिंग के सिर पर ठीकरा फोड़कर विकासशील देशों पर दबाव डाल रहे हैं। यह सही बात है कि आबादी बढ़ने के कारण जल, जंगल, जमीन और जैव विविधता पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं लेकिन यह आग बरसाने वाली गर्मी भी बहुत जरुरी है। नही तो मानव जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा।
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