Saturday, July 1, 2023

अमरकांत जी ने साहित्य के नवांकुरों को भरपूर दिया था प्रोत्साहन: आशुतोष पांडेय


मनाई गई उपन्यासकार अमरकांत जी की जयंती
नगरा (बलिया)। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित उपन्यासकार अमरकांत जी की जयंती पर उनके पैतृक नगर के एक स्कूल पर सादगी के साथ मनाई गई।  

इस मौके पर पत्रकार वेलफेयर सोसाइटी के प्रदेश अध्यक्ष आशुतोष पाण्डेय ने उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी कृति 'इन्हीं हथियारों से' वर्ष 2012 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से अमरकांत जी को सम्मान मिला। नगर के भगमलपुर में एक जुलाई 1925 को अधिवक्ता सीताराम वर्मा के घर पैदा हुए थे। उनका असली नाम श्रीराम वर्मा था। सात भाई व चार बहनों में वह सबसे बड़े थे। मां अनंती देवी व पिता सीताराम के दुलारे अमरकांत हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वर्ष 1942 में 'भारत छोड़ो आंदोलन' में कूद गए। सतीश चंद्र इंटर कालेज बलिया में इंटर कर रहे थे कि उनका विवाह पहली मई 1946 को गिरिजा देवी से हो गया। वर्ष 1948 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए किया। श्री पाण्डेय ने बताया कि जब गृहस्थी के लिए पैसे की जरूरत पड़ी तो आगरा चले गए और वहां 'सैनिक' नामक समाचार पत्र से पत्रकारिता की शुरुआत की। वहां कुछ समय रहने के बाद पुन- इलाहाबाद आ गए। यहां दर्जनों समाचार पत्र व पत्रिकाओं में संपादन किया। स्वास्थ्य खराब होने पर स्वतंत्र पत्रकारिता शुरू की। साथ ही उपन्यास, कहानियां इत्यादि लिखने लगे। उनकी रचनाओं में कालजयी साहित्यकार प्रेमचंद्र की झलक दिखती है। इसलिए हिंदी साहित्य जगत में उन्हें दूसरा प्रेमचंद्र भी कहा जाता था। साहित्य के नवांकुरों को उन्होंने भरपूर प्रोत्साहन दिया। शहर के तमाम साहित्यकार उनकी उंगली पकड़कर आगे बढ़े। कहानी, उपन्यास, बाल साहित्य, संस्मरण जैसी विधाओं में उन्होंने अपनी लेखनी की बदौलत हिंदी साहित्यिक जगत में अपनी अलग पहचान बनाई। 

अमर कांत के निधन की खबर मिलते ही साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। इस समारोह में फरहान अशफाक, राजकिशोर चौरसिया, विशाल गुप्ता, रंजय कुमार, गुड्डू कुमार, मुकेश श्रीवास्तव, शामन्त गुप्ता, विशाल गुप्ता, दीपू कुमार, अमन चौरसिया आदि शामिल रहे।

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