Thursday, November 11, 2021

आस्था का महापर्व छठ सम्पन्न


पोखरों के घाटों पर उमड़ा अपार जन सैलाब
चिलकहर (बलिया)। दुनिया मे उगते सूर्य को तो पूजा सभी करते हैं परन्तु भारत में उगते सूरज के साथ ही डुबते हुए सूर्य को पूजन करने की भी पुरातन परम्परा है। इस परम्परा का संवाहक है दिपावली के तुरन्त बाद कार्तिक शुक्ल पष्ठी तिथि को मनाये जाने वाला छठ पर्व।सनातन सभ्यता संस्कृति की विरासत को संजोये परिवार समाज मे एकरूपता बनाये रखने वाले चार दिवसीय छठ व्रत का पूजन विशेष कर बिहार के आस पास के प्रदेशों मे आस्था विश्वास के साथ धूमधाम से मनाया जाता है।
 
भारत ही नही लगभग विश्व के हर कोने में जहाँ जहाँ पूर्वोत्तर भारतीय बिहारी प्रवासी लोग रहते है वहां वहां आस्था विश्वास का पावन पर्व छठ "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः' की भावना से भारतीय नर-नारियों द्वारा सौहार्दपूर्ण वातावरण मे सूर्य और माता षष्ठी का पूजन होता हैं जो दिनोंदिन नित्य प्रति अपने नये कलेवर मे बढता जा रहा है। विश्व मे जहां अधिकांश देशों मे अशांति का माहौल है वही हिन्दू धर्मावलंबी नर-नारियों द्वारा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को लोक प्रकाशक अस्तांचलगामी सूर्य का पूजनार्चन कर राष्ट्र के सभी जीवों अपने परिवार के कल्याण सुख समृद्धि स्वास्थ्य शान्ति के मंगल कामना से सप्तमी तिथि मे प्रात: पोखरो नदियाँ सरोवरों मे स्नान कर उदयमान अरूणाभ रश्मि रथी भगवान भास्कर को अर्घ दे कर अपनी कृतज्ञता प्रकट कर चार दिवसीय व्रत का समापन किया।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य और छठी मैया का संबंध भाई बहन का है। मूल प्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण इनका नाम षष्ठी पड़ा। दंतकथाओं के अनुसार षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने की थी।ऐसी मान्यता है कि छठ माता संतानो रक्षा कर उन्हें सुसंस्कृत दीर्घायु बनाती है।
 
वरिष्ठ समाजसेवी एवं छठव्रती चन्द्र भूषण सिंह उर्फ गजानन सिंह के अनुसार वैज्ञानिक दृष्टि से  षष्ठी के दिन विशेष खगोलिय परिवर्तन होता है। तब सूर्य की परा बैगनी किरणें असामान्य रूप से एकत्र होती हैं। इनके कु-प्रभावों से बचने के लिए सूर्य की ऊषा और प्रत्यूषा के रहते जल में खड़े रह कर छठ व्रत किया जाता है।

शिव पंचमंदिर गोपालपुर के पुजारी महंत ओम प्रकाश पाण्डेय 'धर्मदास' ने कहा कि छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक लोक कथाएँ हमारे समाज मे प्रचलित हैं।रामायण की मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को राम और सीता ने उपवास किया और सूर्य आराधना कर सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्य से आशिर्वाद प्राप्त किया था। पंडित रामानंद पाण्डेय "कर्मदास' के अनुसार  छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी सूर्य पुत्र कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।

सुप्रसिद्ध तांत्रिक पंडित ददन चतुर्वेदी लब्धप्रतिष्ठ कर्मकाण्डी नई दिल्ली के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ करा उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति की खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या "देव सेना' प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।राजा प्रियवद द्वारा यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।
रिपोर्ट: गोपीनाथ चौबे

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