Wednesday, June 4, 2025

पांच जून पर्यावरण दिवस पर विशेष -

पर्यावरण, मानव सहित जीव -जंतुओं के लिए भी विशेष घातक है "प्लास्टिक प्रदूषण": डाॅ० गणेश पाठक
    
     प्लास्टिक प्रदूषण के घातक दुष्परिणामों की भयावहता को देखते हुए ही इस वर्ष अर्थात् 2025 में 5 जून को मनाए जाने वाले 'पर्यावरण दिवस' के लिए मुख्य विषय "विश्व स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण का अंत" रखा गया है। कारण कि प्लास्टिक प्रदूषण वर्तमान समय में पूरे विश्व भर सबसे घातक प्रदूषण के रूप में अपना विकराल रूप दिखा रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण को यदि "साइलेंट किलर" कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्यों कि इसका प्रभाव धीरे - धीरे धीमा जहर की तरह सम्पूर्ण पर्यावरण, पारिस्थितिकी एवं मानव जीवन सहित जीव - जंतुओं को अपनी चपेट में लेता जा रहा है। 

यही कारण है कि 5 जून , 2025 को विश्व के प्राय: सभी देशों में "प्लास्टिक प्रदूषण" को समाप्त करने हेतु विभिन्न कार्यक्रमों, कार्यशालाओं, गोष्ठियों का आयोजन कर उसके माध्यम से प्लास्टिक प्रदूषण को दूर करने हेतु मसौदा तैयार किए जायेंगे, नीतियां तैयार की जायेंगी, प्लास्टिक प्रदूषण का अंत करने हेतु विधियों एवं उपायों को ढूंढा जायेगा एवं
प्लास्टिक प्रदूषण के घातक दुष्परिणामों की भयावहता की जानकारी देने एवं इससे बचने के उपायों बताने हेतु जन - जागरूकता पैदा की जायेगी। वैश्विक स्तर पर 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त होने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
                     डाॅ० गणेश कुमार पाठक
                         ( पर्यावरणविद् )
   प्लास्टिक के विकास ने एक तरफ जहां मानव जीवन को अनेक सुख - सुविधाओं से युक्त कर दिया है और दैनिक जीवन के प्रत्येक कार्यों में प्लास्टिक ने अपनी पैठ बना ली है, वहीं दूसरी तरफ प्लास्टिक से उत्पन्न प्रदूषण के घातक दुष्परिणामों एवं समस्यायों को भी उत्पन्न कर न केवल मानव जीवन, बल्कि सभी जीव - जंतुओं, पेड़ - पौधों, मिट्टी , हवा एवं जल तथा सम्पूर्ण पर्यावरण एवं  पारिस्थितिकी को अपने प्रभावों से असंतुलित कर संकट में डाल दिया है। एक आंकलन के अनुसार 1960 की तुलना में आज गुना से भी अधिक प्लास्टिक का उत्पादन किया जा रहा है। यही नहीं नदियों के माध्यम से एवं समुद्र के किनारे बसे महानगरों से निकला प्लास्टिक नालों के माध्यम से एवं अन्य स्रोतों से भी समुद्र में पहुंच कर समुद्री पर्यावरण, पारिस्थितिकी एवं समुद्री जल को भी प्रदूषित करता जा रहा है, जिसके चलते समुद्री जीव - जंतु एवं समुद्री पादप जगत के अस्तित्व के लिए भी खतरा उत्पन्न कर दिया है।

     विश्व में प्लास्टिक का कितना उत्पादन हो रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सम्पूर्ण तेल उत्पादन का 10 प्रतिशत तेल प्लास्टिक उत्पादन में ही उपयोग में लाया जा रहा है। विश्व में प्रति सेकण्ड 8 से 10 टन प्लास्टिक की कोई न को ई वस्तु बनती है। प्रति वर्ष कम से कम 60 लाख टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में पहुंचता है। प्लास्टिक कचरा का मात्र 15 प्रतिशत भाग ही पृथ्वी सतह पर बचा रह जाता है। शेष प्लास्टिक कचरा समुद्र में जाकर जम जाता है।अपने देश के 60 बड़े नगर प्रति दिन 4500 टन से अधिक कचरा का निष्कर्षण करते हैं। एक अनुमान के अनुसार वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष 11 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा जलीय  पारिस्थितिकी तंत्र में रिसता है, जबकि कृषि उत्पादों में प्लास्टिक के उपयोग के कारण सीवेज एवं लैंडफिल से मिट्टी में माइक्रो प्लास्टिक जमा हो जाता है। प्लास्टिक प्रदूषण की वार्षिक सामाजिक एवं पर्यावरणीय लागत 300 बिलियन अमेरिकी डालर से 600 बिलियन अमेरिकी डालर के मध्य होती है।

     प्लास्टिक कचरा का प्रभाव बहुत ख़तरनाक होता है। उपयोग के दौरान एवं उपयोग के पश्चात कचरे के रूप में अपशिष्ट प्लास्टिक मानव एवं पशु जगत सहित प्रकृति के सभी अवयवों को विशेष रूप से हानि पहुंचा रहा है। आज प्लास्टिक का उपयोग हमारे जीवन का अंग बन चुका है। प्लास्टिक की थैलियों , दूध एवं पानी की बोतलों , लंच बाक्स तथा डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ का उपयोग मानव स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक साबित हो रहा है।

    प्लास्टिक गर्मी एवं धूप से मिलकर रासायनिक क्रिया करता है, जिससे विषैले प्रभाव उत्पन्न होते हैं। ये विषैले तत्व कैंसर सहित अन्य गम्भीर बिमारियों को जन्म देते हैं। वास्तव में देखा जाय तो प्लास्टिक अपनी निर्माण प्रक्रिया से लेकर प्रयोग स्तर तक प्रत्येक अवस्था में सम्पूर्ण पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद घातक सिद्ध होता है। चूंकि प्लास्टिक का निर्माण पेट्रोलियम पदार्थों से प्राप्त रासायनिक तत्वों से होता है, फलत: वह उत्पादन अवस्था एवं उपयोग के दौरान तक कचरे के रूप में फेंके जाने पर अनेक तरह की रासायनिक क्रियाएं करके विषैले प्रभाव को जन्म देता है। 

    एक अध्ययन में यह ज्ञात हुआ है कि जिन डिस्पोजेबल बर्तनों एवं  कप - प्लेटों में खाने तथा चाय, कोल्ड ड्रिंक आदि पेय पदार्थों का सेवन किया जाता है, तो कुछ समय तक उसमें रहने के बाद रासायनिक क्रियाएं होने से वह खान - पान विषैला हो जाता है। वैज्ञानिक शोधों द्वारा इस तथ्य का भी पता चला है कि प्लास्टिक से तैयार पानी की बोतलें यदि कुछ समय तक सूर्य प्रकाश में रहती हैं तो उसमें विद्यमान जल का उपयोग करने से कैंसर तक हो सकता है।

     उल्लेखनीय है कि प्लास्टिक में अस्थिर प्रकृति का जैविक कार्बनिक एस्टर ( अम्ल एवं अल्कोहल से तैयार घोल ) होता है। सामान्यत: प्लास्टिक को रंग प्रदान करने हेतु उसमें कैडमियम एवं जस्ता जैसी विषैली धातुओं के अंश का मिश्रण किया जाता है। जब ऐसे रंगीन प्लास्टिक से तैयार थैलियों , डिब्बों एवं अन्य पैकिंग में खाने - पीने की वस्तुएं रखी जाती हैं तो ये विषैले तत्व धीरे - धीरे उनमें प्रवेश कर जाते हैं।कैडमियम अत्यल्प मात्रा में भी यदि शरीर में प्रवेश कर जाती है तो उल्टियां हो सकती है। हृदय के आकार में वृद्धि हो सकती है। इसी तरह यदि जस्ता नियमित रूप से शरीर में प्रवेश करता रहता है तो मानव मस्तिष्क के ऊतकों का क्षय होने लगता है, जिसके फल स्वरूप अल्जाइमर्स जैसे रोग उत्पन्न होने लगते हैं। ब्रिटेन के वैज्ञानिकों के एक प्रयोग के बाद यह चेतावनी दी गयी है कि भोजन को गर्म करने एवं ताजा रखने हेतु प्रयोग में लाई जाने वाली पतली प्लास्टिक फाईल में 175 से अधिक दूषित घटक होते हैं, जिनसे अनेक प्रकार की बीमारियां होने का खतरा मंडराने लगता है। इन दूषित घटकों से कैंसर एवं भ्रूण के विकास में बाधा सहित अन्य गम्भीर बीमारियां हो सकती हैं। ध्यान देने योग्य बात है कि प्लास्टिक को नष्ट होने में या समाप्त होने में 500 से 1000 वर्ष का समय लगता है। इसके बावजूद भी प्लास्टिक पूर्णरूपेण समाप्त नहीं हो पाता है। प्लास्टिक के कण मिटृटी में वायमण्डल में सूक्ष्म कण के रूप में दीर्घ काल तक विद्यमान रहते हैं एवं अपना दुष्परिणाम छोड़ते रहते हैं।

कैसे करें प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम एवं बचाव - 
      प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम हेतु सबसे आवश्यक है प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करना। यदि प्लास्टिक का उपयोग न किया जाय तो यह सबसे बेहतर होगा। प्लास्टिक के रिसाइकिलिंग को बढ़ावा देना भी अति आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है। प्लास्टिक के स्थान पर बेहतर विकल्पों की खोजकर एवं उसका निर्माण कर उसका उपयोग करना श्रेयस्कर होगा। प्लास्टिक के घातक दुष्परिणामों के बारे में अधिक  से अधिक या यों कहा जाय कि आम जनता को परिचित कराना आवश्यक है ताकि लोग दुष्परिणामों से अवगत होकर प्लास्टिक के प्रयोग में कमी ला सकें। इसके लिए समाचार पत्रों , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया स्रोतों, रेडियो, टेलीविजन , नुक्कड़ नाटक, गोष्ठियों , कार्यशालाओं आदि के माध्यम से जन - जागरूकता फैलानी होगी।

     प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम हेतु प्लास्टिक के उपभोग को प्रतिबंध करना आवश्यक है। यद्यपि कि सरकार द्वारा प्लास्टिक के प्रयोग को प्रतिबंधित किया गया है किंतु उसका कड़ाई से पालन नहीं हो रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण की रोक -थाम हेतु पर्यावरण पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली अपनानी होगी और उसे जीवन शैली का अंग बनाना होगा। हमें अपनी जीवनचर्या में प्लास्टिक से निर्मित वस्तुओं के स्थान पर कपड़ा से निर्मित शापिंग बैग, दोबारा प्रयोग में लाए जाने वाले कप एवं पानी की बोतलें, स्टील या बांस के बर्तन तथा कागज एवं कांच की पैकेजिंग का प्रयोग करना होगा। प्लास्टिक के कंटेनर एवं बैग के प्रयोग से बचना चाहिए। ऐसे टूथपेस्ट, स्क्रब एवं बाडी वाश से परहेज करना चाहिए, जिनमें माइक्रो बीन्स होते हैं। ये छोटे कण जल में मिल जाते हैं और जब यह जल समुद्र में पहुंचता है तो समुद्री जीव - जंतु इन्हें अपना आहार समझ कर निगल जाते हैं, जो समुद्री जीव - जंतुओं के लिए बेहद घातक होता है। 

इसके स्थान पर ओटमील, नमक आदि पदार्थों से निर्मित स्क्रब का प्रयोग करना चाहिए। नालियों में एवं घर के आस - आस प्लास्टिक को एकत्र नहीं होने देना चाहिए। किसी भी प्रकार की प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं को यत्र - तत्र नहीं फेंकना चाहिए, बल्कि निश्चित कूड़ेदान में ही डालना चाहिए। समय - समय पर स्वयं, मुहल्ले के लोगों के साथ ,स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों के साथ , स्वयं सेवी संस्थाओं के सदस्यों के साथ मिलकर जन - जागरूकता उत्पन्न करते रहना चाहिए। सही मायने में देखा जाय तो प्लास्टिक का उपयोग न करना ही प्लास्टिक प्रदूषण से बचने का एक मात्र उपाय है।

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