Saturday, November 18, 2023

पवित्रता एवं स्वच्छता के साथ स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं ऊर्जा संरक्षण का महापर्व है सूर्य षष्ठीः डाँ० गणेश पाठक


लोक आस्था का पर्व छठ पर्व पर विशेष
अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य एवं जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के पूर्व शैक्षणिक निदेशक डा०गणेश कुमार पाठक ने एक विशेष भेंटवार्ता में बताया कि छठ व्रत अर्थात् सूर्य षष्ठी का व्रत आज एक अन्तर्राष्ट्रीय महापर्व का स्वरूप ग्रहण कर चुका है। सूर्य षष्ठी का व्रत अपने में अनेक आयामों को समेटे हुए है। यह व्रत खासतौर से औरते रखती हैं, किंतु मनौती करके पुरुष भी यह व्रत रखते हैं, जो अति पवित्रता एवं स्वच्छता के साथ किया जाता है। 
                  डॉ. गणेश कुमार पाठक 
समवेत रूप में यह व्रत तीन दिनों का होता है। व्रत की तैयारी कई दिन पहले से की जाने लगती है और अति शुद्धता यथा पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। यही कारण है कि दीपावली समाप्त होते ही घर की पुनः साफ- सफाई प्रारम्भ हो जाती है। सूर्य षष्ठी का व्रत खासतौर से जलस्रोतों (नदी, पोखर, तालाब, नहर आदि जल स्रोत) के किनारे सायं काल एवं प्रातः काल मनाया जाता है। छठ घाट को विधिवत साफ- सफाई कर सजाया जाता है एवं व्रती महिलाएँ जल स्रोत में खड़ा होकर सूर्य भगवान को अर्घ्य देती हैं। इस तरह यह व्रत जल स़रक्षण का प्रतीक है। जल हमारे लिए कितना उपयोगी है और उसकी हमें कैसे रक्षा करनी चाहिए, इसका संदेश भी यह व्रत देता है।

 इसे सूर्य षष्ठी का व्रत इसलिए कहा जाता है कि छठवीं तिथि को यह व्रत किया जाता है और इस व्रत में सूर्य की पूजा की जाती है। शक्ति के प्रतीक के रूप में यह व्रत छठ माता के व्रत के रूप में भी प्रसिद्ध है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस व्रत में डूबते हुए सूर्य एवं उगते हुए सूर्य दोनों की पूजा की जाती है। चूँकि सूर्य ऊर्जा का अजस्र स्रोत है, इसलिए डूबते हुए सूर्य की पूजा इसलिए की जाती है कि हे सूर्य भगवान आप जिस तरह दिन भर की अथक यात्रा करने के बाद भी थकते नहीं हैं और सूबह पुनः नई ऊर्जा के साथ संसार के कल्याण करने हेतु एवं अपनी ऊर्जा से शक्ति का अजस्र स्रोत बिखेरते हुए ऊर्जा का संचार करते है। उसी प्रकार हमें भी ऐसा आशिर्वाद दें और जन- जन के अन्दर ऊर्जा का ऐसा संचार भर दें कि हम मानव बिना थके- हारे अपने कर्तव्यपथ पर निरन्तर अग्रसर होते रहें। इस तरह यह सूर्य षष्ठी का व्रत सूर्य की पूजा के रूपमें ऊर्जा संरक्षण का भी संदेश देता है।

 सूर्यषष्ठी का व्रत स्वास्थ्य की दृष्टि से भी विशेष महत्वपूर्ण है। दीपावली के बाद से ही जाड़ा प्रारम्भ हो जाता है। इस व्रत में प्रायः ऐसे ही प्रसाद जैसे - पकवान एवं फल चढ़ाए जाये हैं, जो जाड़े में स्वास्थ्य सम्वर्द्धन की दृष्टि से बेहद उपयोगी होते हैं। जैसे ठोस पकवान अगरौटा एवं ठेकुआ, फलों में केला, संतरा, नारंगी, नारियल, सेब, अन्नानास ,चीकू, मूली, मौसमी, गन्ना, आँवला, कदम्ब, सरीफा, नीबू आदि अन्य अनेक तरह के अन्य गुणकारी फलों को चढ़ाया जाता है एवं इसके बाद से उनका सेवन शुरू कर दिया जाता है,जो स्वास्थ्य के लिए बेहद उपयोगी होता है।
      
इस प्रकार स्पष्ट है कि सूर्य षष्ठी का व्रत, व्रत के साथ ही साथ स्वच्छता बनाए रखने का संदेश देकर प्रदूषण को मिटाने तथा जल संरक्षण एवं सूर्य पूजा के रूप में ऊर्जा संरक्षण का भी संदेश देता है।

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