हिंदी दिवस पर ओझवलिया में आयोजित हुआ कार्यक्रम
दुबहड़ (बलिया)। हिन्दी एक अद्भुत, अद्वितीय भाषा है जिसको किसी भी भाषाओं से गुरेज नहीं है। जैसे सिंधु समस्त नदियों के जलराशि को अपने अंदर समाहित कर एकरुपता प्रदान करता है उसी प्रकार यह विश्व की सभी भाषाओं को आत्मसात कर भाषा के उच्च शिखर पर ले जाने के लिए प्रयासरत रहती है। अब आवश्यकता है कि विश्वबंधुओ को हिन्दी भाषा को अपनी वाणी की गरिमा बढ़ाने के लिए सदैव ससम्मान विकास की ओर ले जाये इसमें विश्वकल्याण का महामंत्र विराजमान है।
उक्त उद्गार मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार पं० श्रीशचंद्र पाठक ने बुधवार को आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के पैतृक गांव ओझवलिया में आयोजित हिन्दी दिवस समारोह कार्यक्रम में व्यक्त किया। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पिपरा के प्रधान प्रतिनिधि/ मंडल अध्यक्ष अमित दुबे ने कहा कि हमें गर्व है कि हिन्दी भाषा के निर्मल प्रेमांगन में लोट-पोट कर सूरदास जी सूर्य सा और संत तुलसीदास जी चन्द्रमा बनकर हमें ऊर्जा और शीतलता सदैव प्रदान कर रहे है। हम सभी उनके गुणों को ग्रहण कर अपने समाज को आलोकित करें। यही वाणी वाली मां सरस्वती की सच्ची कुसुमांजलि है। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रबुद्ध जनों ने सर्वप्रथम मां सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप जलाकर एवं पुष्पांजलि अर्पित कर नमन करते हुए किया।
आचार्य पं० हजारी प्रसाद द्विवेदी स्मारक समिति के प्रबंधक सुशील कुमार द्विवेदी ने कहा कि हमारी हिंदी भाषा देव भाषा संस्कृत की लाड़ली बेटी है जिसमें प्रेम, शांति और मधुरता का ओज पूर्ण त्रिवेणी की तरह शब्दों की धारायें बहा करती है जिसमें गोता लगाने वाला अपने को गौरवान्वित महसूस करता है। उन्होंने कहा कि हिन्दी भाषा को उच्च शिखर पर ले जाने वाले युगद्रष्टा कालजयी रचनाकार पद्मभूषण आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की उपेक्षा मन को शोक संतप्त कर देता है। आज उनके द्वारा स्थापित अशोक के फूल अपने ही बाग में मुरझा कर प्रबुद्ध जनों को अपनी दुर्दशा की याद दिला रहा है। उन्नीस अगस्त उनकी मुर्ति की स्थापना की आस लिए हर वर्ष आता है। फूल मालाओं का सुगंध लेकर विलखता हुआ चला जाता है।
इस अवसर पर शिक्षक सोनू दुबे, सत्यनारायण गुप्ता, विनोद गुप्ता, शेखर चौबे, विक्की गुप्ता, अक्षयवर मिश्रा, गुप्तेश्वर मिश्रा आदि मौजूद रहे। अध्यक्षता मंडल अध्यक्ष/ प्रधान प्रतिनिधि अमित दुबे एवं संचालन सुशील कुमार दुबे ने किया।
No comments:
Post a Comment