मौत
बेखौफ, बदतर मगर ज़ुर्रत से,
हूँ उद्यत परा ले भर आगोश में।
जाया ना कर वक़्त, आ अविलंब तू,
हूँ देता अवसर मैं अपनी होश में।
बेशक पता है मुझे,
तेरे ठिकानें की सभी राहें।
है बस गुज़ारिश इतना दे बता,
किसमे चलूँ मैं ना निकले कराहें।
मेरी हुई पूरी सारी मुरादे,
पर रह गई कुछ वादें अधूरी।
अनायास कुछ वो कुछ उसकी वो,
बढ़ाने लगे है क्यों?खाई जैसे दूरी।
ना कोई अरमां, ना कोई ख़्वाब,
है अब बची मेरे लिए।
हो जाऊं जुदा मैं, बस खुशी से,
हुआ क्या?जो संग तेरे ना फेरे लिए।
शुक्र है मेरा, मेरे अंतरंग को,
अलविदा उन्हें भी जो है तेरे सौत।
रखना लगाकर अंतर में अपने,
लगा ले गले जब मुझे, मेरे मौत।
सुबोध कुमार
एम.ए. (अंग्रेजी)
पेशा: अध्यापन
ग्राम- कामरु, पोस्ट- सोनैली, कदवा,
जिला- कटिहार 855114
(बिहार)
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