Friday, September 26, 2025

28 सितम्बर को विश्व नदी दिवस पर विशेष -

गंगा को अविरल बनाने हेतु पुन: करना होगा भगीरथ प्रयास: डाॅ. गणेश पाठक
 पौराणिक आख्यानों के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी  तिथि को महाराजा भगीरथ द्वारा घोर तपस्या कर मानव कल्याण हेतु एवं अपने साठ हजार  पितरों का उद्धार करने हेतु स्वर्ग से धरती पर लाया गया। किंतु आज पतित पावनी, जीवनदायिनी एवं सतत प्रवाही निर्मल गंगा इस कदर प्रदूषित हो गयी है कि कहीं - कहीं तो गंगा का जल न केवल पीने योग्य , बल्कि स्नान करने योग्य भी नहीं रह गया है। 

       यद्यपि गंगा को प्रदूषण मुक्त तथा अविरल एवं निर्मल बनाने हेतु अरबों रुपए खर्च किए जा चुके हैं, किंतु अभी भी गंगा न तो पूर्ण रूपेण प्रदूषण मुक्त हो सकी और न ही निर्मल तथा अविरल प्रवाही बन सकी। जबकि गंगा में स्वयं जल शुद्धिकरण की क्षमता है। इस आधार पर यह सोचनीय बात है कि आज मां गंगा का जल कितना अधिक प्रदूषित हो गया है। मां गंगा के जल का इस बेरहमी से दोहन एवं शोषण किया गया है कि मां गंगा आज प्रदूषण की मार से कराह रही है।

                 डाॅ. गणेश पाठक (पर्यावरणविद )

    गंगा मात्र जल स्रोत के रूप में हमारे लिए जल संसाधन ही नहीं है, बल्कि गंगा हमारी मां है। करोड़ों लोगों के जीवन का आधार है। सभ्यता एवं संस्कृति का विकास इसी मां गंगा के किनारे हुआ। इस लिए मां गंगा सभ्यता एवं संस्कृति की संवाहक है। मां गंगा हमारा प्रत्येक दृष्टि से भरण -पोषण करके समारा समग्र विकास करती है। गंगा वासियों का जीवन की कहानी गंगा मां की गोद से शुरू होकर मां गंगा में ही समाहित होती है। इस तरह मां गंगा हमारी सभ्यता एवं संस्कृति की पहचान है।

       किंतु सबका भरण- पोषण करने वाली मां गंगा आज आज हमारे स्वार्थपरक कार्यों के चलते एक तरफ जहां प्रदूषण से बेहाल है, वहीं दूसरी तरफ मां गंगा के जल को रोककर या जल के प्रवाह को बाधित कर अनेक विकास परियोजनाएं निकाली गयी हैं। गंगा नदी से अनेक नहरें निकाल कर एवं बांध का निर्माण कर गंगा नदी के सतत प्रवाही जल को बाधित कर दिया गया है। फलत: गंगा नदी की जल धारा का अबाध गति से प्रवाह एवं उसकी निरंतरता भी बाधित हो गयी है। खासतौर से टिहरी बांध बन जाने के बाद से तो गंगा नदी का प्रवाह विशेष रूप से बाधित हुआ है, जिसके फलस्वरूप गंगा की धारा में जल की कमी हो गयी है और गंगा के प्रवाह मार्ग में आज कल जगह - जगह बालू के टीले उभर आए हैं। यही नहीं गर्मी के दिनों में तो अनेक जगहों पर गंगा नदी को पैदल ही पार किया जा सकता है। सबका कल्याण करने वाली मां गंगा जल की कमी से कराह रही है।

आज गंगा नदी की जल पारिस्थितिकी, जीव पारिस्थितिकी,
मृदा पारिस्थितिकी एवं पादप पारिस्थितिकी बढ़ते प्रदूषण के कारण असंतुलित होती जा रही है। अर्थात् गंगा घाटी की सम्पूर्ण पारिस्थितिकी ही असंतुलन का शिकार हो रही है, जिसके चलते गंगा जल एवं गंगा घाटी में रहने वाले जीव- जंतुओं , वनस्पतियों, मिट्टी एवं जल के लिए संकट की स्थिति उत्पन्न होती जा रही है।

    गंगा में प्रदूषण की स्थिति यह है कि गंगा किनारे स्थापित उद्योगों से निकलने वाला मलवा बिना उपचारित किए ही गंगा नदी में गिराया जा रहा है। नगरों से निकलने वाला कचरा एवं मल- जल भी बेरोक - टोक गंगा में गिराया जा रहा है। जबकि नियमत: इन प्रदूषित पदार्थों को संशोधित कर ही गंगा में गिराए जाने का प्राविधान है, किंतु इसका कड़ाई से पालन नहीं हो रहा है। कृषि के लिए प्रयुक्त रासायनिक खाद, जीव - जंतु नाशक एवं खर- पतवार नाशक विषैली दवाएं भी  मिट्टी में मिलने के बाद वर्षा जल के प्रवाह के साथ या बाढ़ के जल के साथ गंगा नदी में गिर रहा है। इन सबके चलते गंगा का जल निरन्तर प्रदूषित होता जा रहा है। 

  गंगा की जल प्रवाह की निरन्तरता के बाधित होने से गंगा के प्रवाह क्षेत्र में गाद का जमाव होता जा रहा है। जल की कमी से जलीय जीवों के लिए भी संकट उत्पन्न होता जा रहा है। तलहटी में गाद के जमाव से नदी तल उथला होता जा रहा है ,जिससे नावों एवं जलयानों के संचालन में कठिनाई उत्पन्न हो रही है। नदी का तल उथला होने से जल का प्रवाह धीमा हो जाता है, जिससे बरसात के दिनों में जब पानी अधिक होता है हो पानी आगे न बढ़कर किनारों पर फैलकर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर देता है।

     यद्यपि कि गंगा को स्वच्छ एवं प्रवाहमान बनाने हेतु अब तक सरकार द्वारा अरबों रूपए खर्च किए जा चुके हैं। अनेक योजनाएं क्रियान्वित की जा चुकी हैं एवं क्रियान्वित हो रही हैं, किंतु ये योजनाएं अपने यथेष्ट उद्देश्य में पूर्णत: सफल नहीं हो रही हैं, जिस पर समुचित ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके साथ - साथ यह भी सच है कि गंगा को स्वच्छ करना केवल सरकार की ही जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हमारी भी जिम्मेदारी होनी चाहिए। गंगा के किनारे रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए कि हम ऐसा कोई भी कार्य न करें, जिससे गंगा का जल प्रदूषित हो। 

     यदि हम गंगा में प्रदूषित पदार्थों को गिराना छोड़ दें, तो गंगा में इतनी क्षमता है कि मां गंगा स्वत: शुद्ध हो जायेगी। आज आवश्यकता है हमें पुन:  राजा भगीरथ की तरह दृढ़ प्रतिज्ञा करने की है, ताकि मां गंगा अपने मूल रूप में अपनी पवित्रता एवं शुद्धता को प्राप्त कर सतत प्रवाही, पुण्य सलिला एवं पाप नाशीनी स्वरूप को ग्रहण कर लोक कल्याणकारी रूप में पुन: प्रतिष्ठापित हो सके।

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