बच्चों में रक्ताल्पता या एनेमिया की समस्या की पहचान, कारण एवं निवारण विषय पर हुई गहन परिचर्चा
बलिया। इंडियन एकेडमी ऑफ़ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) बलिया के तत्वावधान में, समुदाय के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने और आवश्यक जानकारी प्रदान करने के लिए आईएपी की बात कम्युनिटी साथ नामक कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए बच्चों में रक्ताल्पता या एनेमिया की समस्या और समुदाय से जुड़कर इसकी पहचान, कारण एवं निवारण विषय पर एक गहन परिचर्चा शुक्रवार सायं एनसीसी तिराहा स्थित होटल के सभागार में संपन्न हुई। जनपद के सभी प्रमुख बाल रोग विशेषज्ञों ने इसमें सहभागिता की और विभिन्न संचार माध्यमों से समाज को एक संवाद देने की पहल की।
कार्यक्रम का पहले विषय बच्चों में एनेमिया या रक्ताल्पता और समाज को संदेश पर विस्तृत चर्चा करते हुए ज़िला चिकित्सालय के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अनुराग सिंह ने बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार भारत में प्रजनन आयु वर्ग (15-49 वर्ष) की आधी से अधिक महिलाएं और 6-59 महीने की आयु के लगभग 59% बच्चे एनीमिया से प्रभावित हैं। एनीमिया के कारण पोषण संबंधी कमी (आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन बी 12), मलेरिया जैसे पुराने संक्रमण, आनुवांशिक स्थितियां और अस्वास्थ्यकर आहार संबंधी आदतें हैं। आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया सबसे प्रमुख प्रकार है और अक्सर आयरन युक्त खाद्य पदार्थों के अपर्याप्त सेवन, आयरन के खराब अवशोषण और मासिक धर्म या प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्त हानि से जुड़ा होता है। 2018 में, सरकार महिलाओं, बच्चों और किशोरों में एनीमिया की घटनाओं को कम करने के लिए एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) रणनीति लेकर आई।
चर्चा को बढ़ाते हुए जनपद के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अशोक सिंह ने बताया कि भारत में, एनीमिया एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें रक्तप्रवाह में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी या अपर्याप्त हीमोग्लोबिन होता है, जिससे ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम हो जाती है। इससे थकान, कमजोरी, संज्ञानात्मक प्रदर्शन में कमी और संक्रमण और बीमारी का खतरा बढ़ सकता है, जिससे स्कूल से बार-बार अनुपस्थिति हो सकती है और सामाजिक विकास में बाधा आ सकती है। बच्चों में एनीमिया के समाधान के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें न केवल चिकित्सा हस्तक्षेप शामिल है बल्कि पोषण संबंधी सहायता और माता-पिता को शीघ्र पता लगाने और प्रबंधन के महत्व के बारे में शिक्षा भी शामिल है।
आईएपी अध्यक्ष डॉ राजेश केजरीवाल ने बताया कि बचपन में एनीमिया के बहुमुखी परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाकर, व्यापक समाधान इस स्थिति के तत्काल लक्षणों और दीर्घकालिक प्रभावों दोनों को संबोधित कर सकते हैं। इस विषय पर जागरूकता बढ़ाने और सरकार के एनीमिया उन्मूलन मिशन का समर्थन करने के लिए, भारतीय बाल चिकित्सा अकादमी (आईएपी) ने समुदायों के साथ सक्रिय रूप से बातचीत करने और महत्वपूर्ण जानकारी साझा करने के लिए एक अभिनव कार्यक्रम "आईएपी की बात, समुदाय के साथ" लॉन्च किया। बाल स्वास्थ्य. "एनीमिया की बात, समुदाय के साथ" कार्यक्रम के तहत देश भर में फैले विभिन्न क्लीनिकों और अस्पतालों के 44,000 से अधिक समर्पित बाल रोग विशेषज्ञों द्वारा बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग कार्यक्रम शुरू किए जाएंगे, ताकि हर बच्चे में एनीमिया की जांच की जा सके और बिना किसी लागत के शीघ्र पहचान और हस्तक्षेप सुनिश्चित किया जा सके।
अक्षय तृतीया पर स्वर्ण आभूषणों की तुलना करते हुए वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अजीत सिंह ने कहा कि लोहा हमारे शरीर के लिए सोने के समान है। पोषण और आहार संबंधित सुझाओं पर प्रकाश डालते हुए डॉ अजीत सिंह ने कहा कि शिशु के जन्म के तुरंत बाद स्तनपान शुरू कर देना चाहिये। छह माह तक माँ के दूध के अलावा अन्य कुछ भी नहीं देना चाहिए। इसके तुरंत बाद पूरक आहार देना शुरू करना चाहिए। हरी सब्जियां जैसे पालक, चौराई, साग, सहजन और करी पत्ता, चुकंदर और शलजम आयरन के प्रचुर श्रोत होते है। अनार, सेव, संतरा, कीवी, अमरूद, पपीता आदि फलों में भी आयरन बहुतायत होता है। गुड़ भी आयरन का बहुत अच्छा श्रोत है। इसके अलावा हमारे घरों में उपलब्ध लोहे की कढ़ाई में ख़ाना बनाना खाने में आयरन की प्रचुर मात्रा उपलब्ध कराता है।
लोहे की कढ़ाई का कमाल,
बच्चों के लाल होंगे गाल।
वैज्ञानिक परिचर्चा सत्र में डॉ. आशु सिंह, डॉ डी प्रसाद, डॉ विनेश कुमार, डॉ जे पी सिंह, डॉ ए के उपाध्याय, डॉ दीपक सिंह, डॉ रजनीकांत, डॉ संजय वर्मा आदि बाल रोग विशेषज्ञों ने सहभागिता की।
रिपोर्ट: असगर अली
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