Sunday, October 26, 2025

सूर्यषष्ठी व्रत लोकपर्व पर विशेष-

महर्षि भृगु के भार्गव वंश से जुड़ा है छठपूजा का इतिहास 

ब्रह्माण्ड के कारक पंच महाभूतों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्व से जुड़ा है यह लोकपर्व
सूर्यषष्ठी व्रत की परम्परा, इतिहास पर शोधकर्त्ता इतिहासकार डाॅ.शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने बताया कि सृष्टि का यह सामान्य नियम है कि दुनिया में उगते चढ़ते सूर्य की पूजा होती है। 

उत्तर भारत के बड़े भू-भाग पर चार दिनों तक कठोर तप करते हुए डूबते सूर्य की पूजा करने की परंपरा है। डाला छठ सूर्य और षष्ठी तिथि के पूजन की परंपरा जो आज मात्र भोजपुरी, मैथिली क्षेत्र में सिमट गई है यह सूर्य पूजा कभी अफ्रीका, अमेरिका महाद्वीप तक फैली थी। सूर्य पूजा की परंपरा आदित्य कुल के भार्गवों ने शुरू कराई।

       डाॅ.शिवकुमार सिंह कौशिकेय (इतिहासकार) 

 हिस्टोरियन हिस्ट्री आम दी वर्ल्ड एवं मिश्र के पिरामिडों से मिले प्रमाणों के अनुसार महर्षि भृगु के वंशज भार्गवों ने, जिन्हें इस महाद्वीप पर हिस्त्री, खूफू, मनस नामों से जाना गया, वहां सूर्य पूजा की परंपरा चलाई। इस तथ्य की जानकारी मिश्र के अलमरना में हुई खोदाई से मिले पुरातात्विक साक्ष्यों और अमेरिकी विद्वानों कर्नल अल्काट, एडी मार, प्रो. ब्रुग्सवे के शोध ग्रंथों से की जा सकती है।

डाॅ.कौशिकेय ने कहा कि अमेरिका महाद्वीप पर 12 अक्टूबर 1492 को जब क्रिस्टोफर कोलंबस नाम के पुर्तगाली नाविक यहां पहुंचे थे तब उनको सूर्य उपासना के प्रमाण मिले। इस महाद्वीप पर 10 लाख सूर्य पूजक इंडियन रेड इंडियन भारतीय मूल के भार्गवंशी मौजूद' थे। उनका कत्लेआम यूरोपवासियों ने बड़ी बेरहमी से किया। 

डाॅ.कौशिकेय ने बताया कि महर्षि भृगु के वंशज भार्गवों ने प्रारंभ की थी सूर्य की उपासना। भगवान शिव, प्रभु श्रीराम व पांडवों से भी जुड़ा डाला छठ पर्व। इसके अतिरिक्त अमेरिका के ग्वालेटा यूक्जाक्टन और मैक्सिको में हुई पुरातात्विक खोदाई में भी इसके प्रमाण मिलते हैं।

डाॅ.कौशिकेय ने कहा कि पौराणिक कथाओं के अनुसार जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए तब द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा। फलस्वरूप पांडवों को अपना राजपाट मिल गया। मिथिला की श्रुति के अनुसार प्रभु श्रीराम ने राजतिलक के पश्चात महारानी सीता के साथ छठ व्रत किया था । जिससे उन्हें चक्रवर्ती राजा के रुप मे शासन करने की शक्ति मिली थी। जंगल में सीता जी ने छठ मईया की कृपा से ही अपने पुत्रों कुश-लव को जन्म दिया था।

मार्कंडेय पुराण में छठ पर्व का वर्णन किया गया है। डाॅ. कौशिकेय ने बताया कि शिवमहापुराण के अनुसार भगवान शिव के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म तारकासुर वध के लिए हुआ था। जब यह बात तारकासुर को पता चली तो वह कार्तिकेय की हत्या का प्रयास करने लगा। पार्वती ने कुमार कार्तिकेय को षष्ठी देवी छह देवियों को सौंप दिया, जिन्होंने उनका पालन किया।

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