बापू- शास्त्री की जयंती पर शास्त्री पार्क में आयोजित हुई संगोष्ठी
बलिया। प्रश्न उठा क्या कभी ये तेरे अंदरखाने से,
भला हुआ क्या इस दुनिया का तेरे आने से?
बापू- शास्त्री की जयंती पर देर रात शास्त्री पार्क में आयोजित संगोष्ठी में मुल्क की जनता यह सवाल किए कवि शशि प्रेमदेव ने।
इसके आगे शायर शंकर शरण काफिर ने पढा -
रामराज्य भी तो नहीं आया और न आये राजा राम।
गाँधी बाबा ! तेरी कुर्बानी का ये कैसा अंजाम ?
अपने संबोधन में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बी.एस.ए. मनीष कुमार सिंह ने महात्मा गाँधी के विचारों की वैश्विक स्वीकार्यता और लालबहादुर शास्त्री की नैतिकता और सादगी पर विस्तार से प्रकाश डाला। रंगकर्म से जुड़े शायर डाॅ. अशोक कंचन जमालपुरी ने जनतंत्र की ओर से जोड़ा-
जख़्म खाता हूँ मुस्कुराता हूँ ।
इस तरह ज़िन्दगी बिताता हूँ ।।
तुम वहाँ याद आने लगते हो।
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ ।।
गीतकार शिवजी पाण्डेय 'रसराज ' गीत प्रस्तुत किया।
एक दीप जलता है, संध्या के आने पर।
एक दीप जलता है, रजनी के जाने पर।।
अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि विंध्याचल सिंह ने अपनी रचना से महापुरुष द्वय को याद किए-
चमकें सुरुज अउर चानवां हो
आरे चानवां हो
हिन्द के आसमानवां ||
दुई अक्टूबर के गांधीजी जनमलें
दुई अक्टूबर के शास्त्री जी जनमलें
हीरा मोती जइसन रतनवां हो
हो रतनवां हो
हिन्द के आसमानवां ||
शास्त्री जी की छाँव में कवि डाॅ. फतेहचंद बेचैन, शायर मोईन हमदम, राकेश दुबे, निर्भय नारायण सिंह ने काव्य पाठ किया। संचालन डाॅ.शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने किया। खेल प्रशिक्षक विनोद कुमार सिंह, स्काऊट के राजेश कुमार सिंह, नफीस अख्तर आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
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